बुआजी के घर की यादें आज भी आती है
वो, बिदाई गीत गाती थी
हमारी जाती के बिदाई गीत , कलार समाज के सबके अपने
बिदाई गीत, जिनका अर्थ एक ही होता था
हम पर्देशिन , परदेशिन
हम परदेशिन माई , पाहुनिन ओ
हम चली , माई हम चली , हम चली परदेश
छोटे से मुँह की माई , घायलि
मोरी, माई पनिया भरण को जाए
कहां जुड़बो, साथ
मायके में जुड़ाबो साथ,
(मुझे वो, गीत याद नही , बीएस २ -४ प्नतियां भर याद रही
काश वो, गीत संजोती, बहुत प्यारे गीत थे जणवा-कुसुम में लिखे भी है
कुछ गीत, मैंने
इसमें ,
हम पर्देशिन, माई पहोनिन ओ ,
ये बहुत भावभीना गीत होता था )
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