Saturday 14 February 2015


बुआजी के घर की यादें  आज भी आती है 
वो, बिदाई गीत गाती थी 
हमारी जाती के बिदाई गीत , कलार समाज के सबके अपने 
बिदाई गीत, जिनका अर्थ एक ही होता था 
हम पर्देशिन , परदेशिन 
हम परदेशिन माई , पाहुनिन ओ 
हम चली , माई हम चली , हम चली परदेश 
छोटे से मुँह की माई , घायलि 
मोरी, माई पनिया भरण को जाए 
कहां जुड़बो, साथ 
मायके में जुड़ाबो साथ,
(मुझे वो, गीत याद नही , बीएस २ -४ प्नतियां भर याद रही 
काश वो, गीत संजोती, बहुत प्यारे गीत थे जणवा-कुसुम में लिखे भी है 
कुछ गीत, मैंने 
इसमें ,
हम पर्देशिन, माई पहोनिन ओ ,
ये बहुत भावभीना गीत होता था )

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