Tuesday, 30 July 2013

sapnon ke ganv me

यूँ ही लिख रही हूँ, ये कविता
क्यूंकि , रोज तुमसे एक कविता
लिखने का वादा है

झिलमिल सितारों की छाँव में
जहाँ  अँधेरा बुनता है
कोई, रहस्य
और गुम  हो जाती है
अपनी ही पहचान
जब बादलों से झांकता है
चंद्रमा ,
झीलों में चांदनी का
आँचल लहराता है
जब, कोई पक्षी तडपता है
गूंजने लगती है
कंही शहनाई
ख़ामोशी खुद को ही
जब, सुनने लगती है
तुम्हारी याद तब
सन्नाटे को चिर कर
कैसे गुनगुनाती है
विहंसती है
मुस्कराती है 

Saturday, 27 July 2013

tujhe bhul jana...

सच कामिनी ,
सोने का ये ढंग
कान्हा से सीखा है
चुनरी को
दन्त-पंक्तियों में दबा कर
मुठ्ठियों में
आंचल को भीच कर
जब तुम सोती हो
सरोवर में खिलती
कमलिनी की याद अति है
जो भ्रमर मन को बांध कर
प्रात तक नही नही पसीजती

Saturday, 20 July 2013

hosh knha rahta h, tumhe


होश कंहाँ रहता है , तुम्हे 
सोते हुए बिखरे गेशुओं का 
केशों में लगाये पुष्प-दल का 
अस्त-व्यस्त आंचल का 
बिसूरे हुए काजल का 
पांवों में सजती पायल का 
पारिजात , तुम्हे तो 
इस हाल में सोये देख 
चंद्रमा भी रास्ता 
भूल जाता है , अस्ताचल का 

jb tum soti ho

जब भी तुम सोती हो
बिछौने पर अलमस्त
अधरों पर अल्हड
उन्मादी मुस्कराहट लिए
सच, ऐसे सजीव दृश्य  को
निरखकर तो,
फिर से जल उठते है
स्वत बुझे  हुये दिये

सधीर 

Thursday, 18 July 2013

aj nhi likhna

आज इतना धैर्य नही , कि दो शब्द भी लिखूं ,
जबकि कवितायेँ ५ लिख  रखी है 

bihar ne rulaya h

  बिहार में जो बच्चों को दलिया में  मौत   बांटी गयी है , उसके बाद क्या आपको वो नन्हे मासूम बच्चे यद् नही आते , जो अपनी मासूम मुस्कराहट बिखेरते ,इधर उधर दौड़ते भागते है .
मै आज चाहती हूँ कि   जुझारू        

Tuesday, 16 July 2013

b tp tutne lge

पपीहा सा मन
जब कूह्कने लगे
देह से दूध की
धाराएँ जब फूटने लगे
तब, साधारण जन की
क्या बिशात
विश्वामित्र का तप भी
जब, टूटने लगे

सधीर 

madhuyamini

करवटें बदलती ,धड़कती  रातों की
सितारों से सुसज्जित नभ में
उतराती खचित परातों  की
अंगडाई लेती ,चन्द्र-ज्योत्स्ना से
असमान की मनुहारी बातों की
मधु-सिंचित मुस्कराते फूलों की
सुवासित इठलाती बारातों की
लहकती महकती बौराती आती
गंगा की उफनती मौजों की
शहनाई सी गूंजती तन्हाई में
निशा के लहकते झंझावातों की
मदभरी मुस्कानों में छिपी
अनंग की अनकही बातों की
लिखी नही जाती कोई कविता
मधुयामिनी ली लजाती   मुलाकातों की

(यंहा, मौजों को पहले चक्रवात लिखी थी, किन्तु, आजकल मौसम के मिजाज को देखकर उसे मौजों में बदल दी ) जोगेश्वरी सधीर 

Monday, 15 July 2013

vo

vo, आचार्य चतुरसेन शास्त्री क्या कहता है 

badh aa gyi h

गुरु-पूर्णिमा के पहले इस बरस , बरस बरस से , हाल हुए बेहाल
अब तो रहम करो महाकाल 

likhne ke liye, jindagi chhoti h

कुछ कवितायेँ, जो कल लिखी

साँझ जब तुम दीप जलावोगी
फिर कुछ याद कर मुस्करावोगी
सच उसी लम्हा , जाने क्यों
तुम, औरत से फूल  बन जाओगी

खुद को सजाते -संवारते हुए
जब तुम कुछ गुनगुनावोगी
रजनीगन्धा की तरह तुम भी
तब रातों को मह्कओगी

एक कलश जल
जो,तुमने गंगा की लहरों से
उलीचा था
सच कहो,
क्या ,उसी क्षण
तुमने कुछ यादों को
नही सींचा था

 जोगेश्वरी सधीर 

Sunday, 14 July 2013

ek turant likhi kavita

हाँ , यहाँ , कैफ़े की भीड़ व् शोर में लिख रही हूँ
ये कविता, तुरत -फुरत तैयार डिश की तरह
जो, शायद तुम्हारी favorit हो जाये

की, आज भी याद आती
जब भी , तू, अपने घर में
दिए जलाती है
तू, आज भी , बेतरह से
याद आ जाती है
तब मेरी आँखों में
जाने कैसी धुंध सी
छा जाती है
बहुत प्रिय है, मुझको
तेरी मुस्कान की तरह
तेरी दिये जलाने वाली
जीवनशैली
दुआ करती हूँ
तेरी वो उजली मुस्कराहट
वक़्त की धुंध में
न हो, जाये मैली 

Tuesday, 9 July 2013

anuvad ke liye likh rahi hu

अनुवाद, जो नही देख सकी

बेइरादा नजर मिल गयी तो
वो, मुझसे दिल, मेरा मांग बैठे
कैसे संभलेगा उनसे मेरा दिल
जाने वो, ये क्या मांग बैठे
अब , देखे अनुवाद 

Monday, 8 July 2013

solah ane sachchi

अनुवाद के लिए है

पूरी सोलह आनी सच्ची
ये प्रेम कहानी
इसमें दूध ही दूध है
नही जरा भी है ,पानी
चंचल , गोरिये .....

Sunday, 7 July 2013

is git ka anuvad kre

   गीत है , अनुवाद के लिए
आधी सच्ची , आधी झूठी
तेरी प्रेम कहानी
या तो, पूरा सच्चा   हो जा
या फिर करले ,बेईमानी 

anuvad dekh rahi hu

इस गीत   का अनुवाद देखो 
हम गवनवा ना अयिहे बगैर झूलनी 
चलो देखते है 

Thursday, 4 July 2013

bandh liya hai, aanchal, me

गीत है , आनंद आश्रम फिल्म का ,
सारा प्यार तुम्हारा , मैंने बांध लिया है, आँचल में
हम और पास आयेंगे , वो और पास लायेगा
जीवन के उपवन में