Sunday, 14 July 2013

ek turant likhi kavita

हाँ , यहाँ , कैफ़े की भीड़ व् शोर में लिख रही हूँ
ये कविता, तुरत -फुरत तैयार डिश की तरह
जो, शायद तुम्हारी favorit हो जाये

की, आज भी याद आती
जब भी , तू, अपने घर में
दिए जलाती है
तू, आज भी , बेतरह से
याद आ जाती है
तब मेरी आँखों में
जाने कैसी धुंध सी
छा जाती है
बहुत प्रिय है, मुझको
तेरी मुस्कान की तरह
तेरी दिये जलाने वाली
जीवनशैली
दुआ करती हूँ
तेरी वो उजली मुस्कराहट
वक़्त की धुंध में
न हो, जाये मैली 

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