vo लडकी जो
सुबह कमलिनी सी
खिल कर ,मुस्कराती थी
जो, अरमानों की रंगोली
सजाती थी
वो लडकी जो घर को
ख्वाबों के फूलों से सजाती थी
वो लडकी , जो दौड़ती भागती
मुझकों , मोड़ पर मिल जाती थी
जो, बैषाख की धूप की तरह
खिलखिलाती थी
जिसकी यद् करते
साँझ और रात गुजर जाती थी
तितली की तरह उडती
वो लडकी कन्हा है
जोगेश्वरी
सुबह कमलिनी सी
खिल कर ,मुस्कराती थी
जो, अरमानों की रंगोली
सजाती थी
वो लडकी जो घर को
ख्वाबों के फूलों से सजाती थी
वो लडकी , जो दौड़ती भागती
मुझकों , मोड़ पर मिल जाती थी
जो, बैषाख की धूप की तरह
खिलखिलाती थी
जिसकी यद् करते
साँझ और रात गुजर जाती थी
तितली की तरह उडती
वो लडकी कन्हा है
जोगेश्वरी
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