Friday, 30 August 2013

ye pranpiriya

ये प्राणप्रिया
ये, जो, मैंने
तुम्हारे आँचल पर
अर्ध-रात्रि के गीत लिखे है
वो, एकांत निशाओं का
महाकाव्य
तेरे अद्वितिव सौन्दर्य से
रस-सिक्त हो उठा है
कामिनी
ये  तेरा कैसा म्रदु-हास् है
जो, युगों युगों की
प्यास जगता भी है
 बुझाता भी है

ओ चित्त -हरिणी
अपनी नाजुक उँगलियों से
उकेर कर रंगों का अपूर्व संसार
जगा दिए तूने मेरे
युगों युगों से सुप्त
प्रेम-राग

तुम्हारी हंसी
और, नदी की धार  के बीच
कुछ भी तो, नही
 सिवाय,मेरे प्यार के

Thursday, 29 August 2013

tera nikhar

ये जो , अविराम
अभिसार से उपजा
तेरा श्लथ निखर

ये जो तुम
धीमे से हंसकर
हौले से बोलती हो
जैसे मिश्री सा
मेरे जीवन में
रस घोलती हो 

mujhe gyat h

मुझे ज्ञात है
शांत एकांत में
प्रगल्भ क्षणों में
उसकी तेज दृष्टी को
निरख कर
तुम चुपके से उसे
जानू कहके मुस्करा ओगी
 ह्रदय से चिपटा कर
मेरे अहसास पाओगी

तुम अक्सर विहंस कर
उसे जानू कहके बुलओगी
और उन लम्हों में खो जाओगी
जो, हमारे बीच बहे है 

vo udit ho raha, bhor ke tare ki trh

ये उमगा , वो आम्रपगा
मेरी जन्म की ऋतू में
वो, भोर के तारे की तरह
उदित हो रहा है
 दिशाएं निर्मल होने लगे
जब,नदियों में जल का भराव हो
इसे शरद की भोर में
ऋषियों के  मुहूर्त में
उसका उदय अवश्यम्भावी है
वो मेरे सात्विक गाम्भीर्य
और तेरी चपल चंचलता से भरा
वीरोचित व् साहसी होगा
तेरे सुंदर मुख की अनुकृति
विहंसते अधरों से
मोहित करता आ रहा है
तेरे आँचल में प्रसून सा खिलता
पूनम के चंद्रमा सा निखरता
जब, वो अर्धुन्मिलित दृष्टी से
तुझे, टुकुर टुकुर निहारेगा
उसकी(बालक ) बालसुलभ निगाहों में
तुम्हे, मेरी बेधती नजरों का
अहसास होगा
वो, तुम्हारे ,जलाये दीपों का
जगमगाता उजास होगा
सोनू की तरह , चौड़े स्कंधों से युक्त
सिंह सा प्रतीत होता
वो, राजसी चल से चलता
स्वत बनकर सबका चहेता
वो, शाश्त्रों का उद्वेत्ता
मुझ सा जिग्याशु चिन्त्नन्वेता
देवताओ से आशीष लेता
वो, मेरी तरह, तेज से अभिसिक्त
तेरी कोख में प्रभामंडल सा
तेरे जीवन में छा रहा है
वो, जज्ल्व्मान नक्षत्र सा
तुझसा मन मोहता
तेरे जीवन साथी की तरह
तुझपर अविच्छन्न
स्नेह लुटाने
तुम्हे अपने में समाहित करके
वो, वीरोचित अभिमानी
संस्कारी द्विज सा
शास्तों का प्रणेता
मुझसा, स्वत प्रतिभा से
अनुप्राणित
तेरे आँचल में खेलने
मुस्कराता हुवा
निश्छल प्रभाष सा
सागर सरीखे , विस्तृत ह्रदय वाला
नभ के विस्तार युक्त
प्रखेरुओं सा उन्मुक्त विचरता
पराक्रमी योद्धा सा
विहँसता मचलता
तेरी गोद में खेलने आ रहा है
उठ मानिनी
तेरे बरसों के स्वप्नों का
साकार समुच्चय
तेरा दुलार पाने
सबका मन बहलाने
तेरा मन बढ़ाने
तुझे पल पल रिझाने
दिसम्बर के आसपास आ रहा है
वो, भोर  का तारा
अनुराग हमारा
अध्खेली करता
राग जगाता आ रहा है  

rup tera chaundhiyata

रूप तेरा चौंधियाता
नजरियों से सींचा सींचा
दुप्पट्टा तेरा उड़ उड़ जाता
मुठ्ठियों में भींचा भींचा
तेरा लौंग गव्च्छा
मिर्च जैसा तीखा तीखा
उपमानों से चित्र तेरा
चंद्रमा जैसा खींचा खींचा
(इसका मतलब ये नही, की खिंच के तुम तमाचा जड़  रही हो )

janbujh kr nhi likh rahi

जो, कविता लिख रही
वो जानकर बनाकर नही लिख रही
जो, भीतर से आ रही है
वन्ही लिख रही हूँ
इसमें मेरा कोई प्रयास नही है 

ye teri banh pr ksa huwa

ये तेरी बांह पर कसा हुवा
बाजूबंद
कर  देता है ,देखने वालों के
होशबन्द
पायल तेरी नदियाँ की लहरे
करे ,झम झम
बिजली जैसे झलके
तेरी कमरिया का कबंध
मत खोल झुककर
पायलिया के बंध
होश उड़ा रहे है , सच
तेरी , हंसी की सौगंध 

kisne kaha h,itna ka krne

बावली , ये क्या बचपना है , तेरा
किसने कहा है , तुम्हे
कि रत दिन काम  करो
करो पर, कुछ कम करो
आखिर , तुम्हे अपनी भी परवाह करनी चाहिए
आशा है , इसे अन्यथा नही लोगी
और अपने आप का ख्याल रखोगी 

Wednesday, 28 August 2013

jlte diyon sang

जलते दीयों संग
ये जो, तुम्हारा रोमांस है
सच ये अहसास
प्रेमपगा
युगों युगों तक
जीवित रहेगा
मेरी कविताओं में
तेरे अप्रतिम रूप की
दीप्त छटाओं संग
ओ, दीपशिखा

2  दीपशिखा
दीपशिखा
कोई तुझसा सुन्दर
मुझको नही दिखा
दीप जलते हुए
मुस्कराते हुए
तेरा म्रदु हास्
जगता है ,प्रेम का
अविचल अहसास
बांधने  लगता है , ह्रदय को
स्वत , तेरा प्रेमपाश 

ghar ke, tumhare.....

 घर के तुम्हारे
साझ सम्भार में
छिपा है , कितना
तुम्हारा प्यार
तेरे ये साँझ संवार
घर के कोने कोने को
देते है , आत्मीय दुलार
उत्कंठा से ,तुम्हारा
वो करना सबका सत्कार
जिसमे छिपा होता है
तेरा मनुहार
ये तेरे प्यार से सजा
निखरा , सुशोभित संसार
कंही किसी की मलिन दृष्टी
से न हो , कोई व्यवहार 

fir chandani rat me

फिर चांदनी रात में
वन्ही तन्हाई होगी
वन्ही उबशियाँ होगी
डूबी होगी रात
अपने ही आगोश में
वन्ही अलमस्त
फिजायें होगी बदहवाश
बीएस, हम तुम
जुदा जुदा होंगे 

vo aayi is trh

और सुनो
वो आई इस तरह , जैसे मंडवे में कलश
बना रहे बनारस

मंडवे से मतलब है , जो विवाह में मंडप डाला  जाता है , उसमे सुहागिन , आती है , नेग में कलश लेकर , वो भी दुल्हिन से कम नही सजी होती
दूसरा है
वो आई इस तरह , जैसे चौक पर कलश
बना रहे बनारस
चौक, वो रंगोली है , जिसे वधु के बैठने के लिए , बनाया , या पूरा जाता है
हमारे गांवों में इस चौक को एक कमल के यंत्र की तरह बनाते है , मंडवे में बहुत सी सुहागिनें चौक बनाती है , जो की बहुत ही रंगों भरा सुंदर चित्रांकन होता है
गांवों की इस लोककला को सहेजने की जरुरत है 

chhammakchhallo

छम्मक्छल्लो
कैसी हो
आजतो,गज़ब का श्रिंगार किये हो
एक शे'र सुनो
सर से पांव तलक एक अदा छाई हुयी है
उफ़ ,तेरी मासूम जवानी , जोश पर आई हुयी है 

siskiyon ke bich

सिसकियों के बीच
जो, तुम्हारे आंसू
मैंने डिब्बी में सम्भालकर
रख लिए थे
कुछ दिनों बाद देखा
तुम्हारे वो आंसू
अनमोल मोती बन थे
    सच pear

Monday, 26 August 2013

kya sochte hai

क्या  सोचते है, आप
प्यार करना खेल है
हर पल
कतरा कतरा
अपने ही दिल का
करना होता है , खून
कम नही होता है, जूनून
हंसता है, वो शख्स
ओ, प्यार में रोता है 

seperation

if sepration is essential
i know
i except
then, u shuold dislike
that's first condition
&other is,
sweetheart
u, shuold hate my poetry
my self


tum dur kya gye

वो तारों को तोडके लेन की बातें
मेरी आँखों में
वो, तुमसे मिलन के
सपने झिलमिलाते
वो, beintha बातें
तुम दूर क्या गयी
रातें दूर ले गयी
आँखों से
सपनों की सौगातें 

Sunday, 25 August 2013

jis pal

जिस क्षण तुमसे
अलगाव होता है
ये मन, उसी क्षण
तुमसे जुड़ने के
बहाने dhundta  है

जाती हो, तो जाओ
मुझसे दूर
मेरा हाथ छुड़ाके
न ही एक  को ठिठकना
न, ही पीछे मुडकर देखना
न ही कभी भूलकर भी
 मेरी बातों  को याद  करना
न , बेख्याली में
मेरे गीत गुनगुनाना 

Saturday, 24 August 2013

dur tk jayegi

दूर तक जाएगी
वो नव, लेकर तुम्हे
नदी के उसपर
तुम्हारे गाँव
जन्हा बसा है
तुम्हारा नया संसार
इस पर है
मेरी नियति
और वो, अनब्याहा
सपनों का अभिसार 

navvadhu ne puri ki, 4 centuri

मेरे ब्लॉग, टाइटल
नववधू ने
अपनी चतुर्थ centuri
यानि शतक
पुरे किये है
आप सभी के
प्यार को
मेरा आभार
व् शत शत नमन 

nithur raton ki

निठुर रातों की
न करना कोई बातें
न करना मुझसे
कोई शिकायतें, रे मन
ये तो अति जाती है
चंद्रमा की दशाओं की तरह
बस , एक जैसी रहती है
कोरी कुंवारी तन्हाई
जोगेश्वरी 

nav-vadhu

नववधू
चांदनी रात में
झिलमिलाते तारे ही
या,मेरी आँखों में
झिलमिलाते आंसू ही
तुझसे जुदाई के ,
सोचके न होना
तुम उदाश
क्योंकि
मेरी निश्ताब्ध निशाओं में
मेरे घर आकर
तुम्हारे जलाये दीयों का
कभी न मद्धिम होगा
जगमगाता प्रकाश
जाओ तुम अब
ख़ुशी ख़ुशी
अपनी घर की देहरी पर
दीप जलाना , और
अपनी दिलकश
मुस्कराहटों से
अपने सजन की
रातों को सजनो
अपने घर को
अपने प्यार से महकाना
जोगेश्वरी 

fir chandni rat me fir

फिर चांदनी रात में
वन्ही तन्हाई होगी
वन्ही उबशियाँ होगी
डूबी होगी रात
अपने ही आगोश में
वन्ही अलमस्त
फिजायें होगी बदहवाश
बस हम तुम जुदा जुदा होंगे
कुछ भी तो
नही बदला होगा
पहले से अलग
२। …….
चांदनी ने लिखी होगी
तुम्हारे गोर मुख पर
जुदाई की बातें
आँखों की कोरों से
सब्नम की तरह
अनकहे , आंसू बह जाते 

vo taron ko todne ki baten

वो तारों को तोड़ने की बातें
मेरी आँखों में
वो सपने झिलमिलाते
वो, beintha बातें
दूर तुम क्या गये
रातें भी दूर ले गयी
मेरी आँखों से
सपनों की सौगातें 

apne pyar ko

अपने प्यार को
पाप से
अनैतिकता से
अनाचार से बचाना है
तो ,
मत देखो
नजर उठाकर
अपने प्रिय को
यदि नजरें उसकी ओर
उठने लगे तो
अपने मन के अश्वों को
लगाम दो
और प्रायश्चित  करो
जीवन भर
सर झुकाकर
एकाकी , जीवन भर 

dhalti sanjh me

ढलती  साँझ में
थपकी देती हवाएं
डूबते सूरज संग
सिहरती घटाएं
वो,  कौन सा दिन था
जो, तेरे ख्याल बिता
बेगानी सी लगती है
अब निररुद्देश निशायें 

Friday, 23 August 2013

ratri me

रात्रि में , सोये हुए
तेरे निन्द्रित मुख की
निरखकर छटा
लगता है , जैसे
सावन की निविड़ रातों में
 झूम रही हो
मतवाली , बावरी घटा
ओ, बावली
अपने चंद्रमुख से
ये, केशों की अलकें तो हटा
देखूं तेरा
पूनम के चाँद सा
उजला चमकता मुख
ह्रदय ने पाया है
जैसे तुझे निरखने का
जन्मों जन्मों का सुख 

dekh to, uthkr

देख तो, उठकर जरा
ओ गंभीरा
कैसा नीरव रात्रि में
सावन झूमकर बरसता है
तब तेरे रूप को निरखने
प्रणय-अनुरागी मन
चातक  सा तरसता है
हे, मेघसुता
तू, करके , जब
भादों की बिज्रियों  का श्रंगार
जब जब आती है
मेरे मन के द्वार
तो, निरखकर
तेरा यौवनोंमुख मुख
मन हो जाता है
प्रणय के लिए, अधीर

aj prath se

आज प्रात से
जब हवाएं घूम रही है
 दिशाओं में अकुलाई सी
 में नींद में लगती हो
विहंसती कुनमुनाई सी
ओ , हंसनी
तुम्हारे मुग्ध करने वाले
नैन बाण ,निरखकर
मोहित  हुए है
मेरे प्राण


Wednesday, 21 August 2013

kantar....

कान्तार
तेरे रमणीय अहसासों से
सज गया है
मेरा ह्रदय प्रान्तार
देख ,कैसा मेघ
नित बरसता है
आकाश ,धुशर होकर भी
नित , नूतन लगता है
जाने ह्रदय के किस कोने में
 करती हो ,तुम विश्राम
कि ठिठक के
बज  उठे है
मन वीणा  के प्राण

जोगेश्वरी 

Saturday, 17 August 2013

tere aspas

तेरे आसपास
मेरे दिल के अहसास
क्या  यंही है
प्रेमपाश 

Thursday, 15 August 2013

kavita likhne ke liye

kavita likhne jaruri nhi ki, aap bndhi bndhayi lik pr chale
यदि, मै कोई तुकबन्दी करूं , तो उसे कविता नही कह सकते
कविता  पहले आप कोई माहौल को याद कीजिये
फिर उसे कागज के हवाले कीजिये
वैसे कविता तो ह्रदय से स्वत ही निकलती है
आप जब अपनी कविता खुद ही लिखेगे , तो आपको बेहद ख़ुशी होगी
जैसे , रात हो,
सावन की जिन्गुरों से गुंजित रात हो
आसमान में चंद्रमा चमक रहा हो
रात इसी महसूस हो रही हो
जैसे की, वो खामोश सी कोई कविता है
आपका दिल क्या महसूस करता है
ये लिखिए , कोई उपमा या उपमान
या कोई बिम्ब सूझे, तो रात को वो नाम दीजिये
जैसे रात को आप एक इसी रहस्यमयी सुन्दरी कह सकते है
जिसने चांदनी के सितारों वाली ओढनी ओढ़ी हो , और अपने प्रियतम
चंद्रमा से मिलने चली हो
आप सावन के महीने में लिख रहे है , तो उसकी विशेषता लिखे
कैसे जुगनुओं को चमकते देख रहे है, जो अपनी चमक से अँधेरे को भीमात  दे रहे हो
(नही लिख सकती, बहुत शोर हो रहा है )

Wednesday, 14 August 2013

k ye bhi bat h

एक शे'र है , सुनिए

तुम रेल सी  गुजरती हो
वो , पुल सा थरथराता है
(ये बावली , कुछ तो रहम कर )

fir vnhi bat h

अपनी आखों में लगा लिया है
तुमने रात  का अंजन
चाँद सी जगमगा उठी है
काया तेरी कंचन कंचन
तल्लीन है , रात उनींदी सी
कोई नया  ख्वाब बुनने में
उंघती चांदनी मस्त है
उंघते बादलों को। ……. में
(यंहा। ……. में आप जो शब्द रखना चाहो )

Tuesday, 13 August 2013

ye kavita bhi sadharan h

तेरे आंचल में खिले
फूल ही फूल
तेरे ओठों पर सजे
हंसी मृदुल मृदुल
तेरी चितवन करें बातें
चटुल , चटुल
चित्त मेरा ,तुझे पाकर
होता है , प्रफुल्ल

एक औसत कविता 

umga means

उमगा याने , उमगने वाली जिस में उमंगे भरी हो
हुलसना, उमगना जैसे देशी शब्दों को हम प्रयुक्त नही करते है
हमारे बचपन के वक्त जो शब्द हम सुनते थे , अपने बड़ों से
वो अब नही सुन सकते , क्योंकि वो लुप्त हो चुके है
जिसका प्रयोग नही होता, वो शब्द ख़त्म हो जाते है
ओ भाषा भी नस्त हो जाती है
कितनी ही भाषा व् बोली आज हम नही जान  सकते 

ye umga

हे उमगा
लगती है ,तू
निश्ताब्ध निशा में
खुमार जगा जगा
 
              २
मधुर मधुर हंसी तुम्हारी
अरुण अरुण , तुम्हारे कपोल
नैनों में तेरे , विहंसते फूल
प्रिय लगते , तुम्हारे मीठे बोल
आगमन से तुम्हारे , नदियों में कल्लोल
(कल्लोल -कल कल )
ह्रदय में उठी है , ये कैसी हिलोर
सजनी तो सीधी है
पर नैन उसके बरजोर
जोगेश्वरी 

Saturday, 10 August 2013

baharo ful barsao

अब क्या लिखूं
बहारों फुल बरसो 

ye ek kavita shesh thi

ये मतवाली
तुम कितनी सम्रद्ध हो
तुम्हारे उभार में
कंचन-जंघा का  चरम है
तुम्हारे सौन्दर्य से
प्रकृति का ऐश्वर्य
छलक पड़ता है
तुम्हारी उद्दात भावनाएँ
जैसे उफनता हुवा
समुद्र है
तुम जैसे
शिवालिक की  चोटियों को
आंदोलित करती हुयी
विजय करती हुयी
मुस्कराती हो
वो, तुम्हारी तिरछी
चितवन की
बंकिम हँसी , व्
लजीली मुस्कान निरख कर
लगता है
गूंजने लगी हो,
बांसुरी कान्हा की

जोगेश्वरी 

amrpga

आम्र -पगा ,
क्या स्थगित कर दूँ , ये कविता
ये श्रंखला
किसी दुसरे-जनम में पूरी करने के लिए

मैंने  जो अनुराग -पगा लिखी हूँ
वो, दरअसल आम्र-पगा ही है

Tuesday, 6 August 2013

ye sumukhi

हे सुमुखी रूप तेरा
चांदनी से धुला  धुला
शरद की पूर्णिमा में
जैसे चंद्रमा उजला
उर्वशी रूप तुम्हारा
जंवा -कुसुम सा जगा जगा
जिसने भी देख लिया
रह गया ठगा ठगा
अषाढ़ की  रातों में
जुगनुओं की आंख -मिचौली
इसे में मधुर लगती
म्रदु-भाषणी तुम्हारी बोली
बादलों संग बिजली का
सावन में चल रहा विहार
सुन्दरी तेरे आंचल में सजे
प्रणय के प्रेमोपहार
अनुराग-पगा तेरी चितवन
करती भावों का संचार
लाज से ढके मूंदे
युअवन के प्रेमोपहार
जोगेश्वरी 

ye vdhu, ye bhamini

 वधु , ये भामिनी
तुम्हारी मुस्कराहट की चकाचौंध
मुझे अनुरागी बनती है
तुम्हारी रूप-ज्योत्स्ना में
तप्त ह्रदय को शीतलता मिलती है
तुम समस्त सुखों को
प्रदान करनेवाली, गौरी हो
तुम्हारे जैसा सुख देने वाला
इश जीवन में नही   है
तुम मेरी समस्त कलाओं की
उत्तराधिकारी हो
तुम मेरे पुत्र की सहज सखी हो
उसे प्रेरित करने वाली बनो
तुम्हारे सिवा मुझे कोई उसका
सच्चा हितेषी नही मिलता
तुम सच्ची भवप्रीता हो
तुम जैसी सहनशील कौन है ?
तुम्हारा स्नेह अचल है
तुम्हारे आँचल में प्रसून खिले
तुम हमारे घर आँगन में
खुशियों की वृष्टि करती हो
तुम्हारे आने से हमारे कुल की
श्री वृद्धि होती है
मै  तुम्हे अपने सरे कर्तव्य सौंप कर
विश्रांति पाती  हु
तुम जन्हा भी रहो , विजयी रहो
तुम सुरक्षित रहो, सुखी बनो
जन्हा भी रहो, लक्ष्मी तुम्हारी
अनुगामिनी बने
जोगेश्वरी

Saturday, 3 August 2013

ek kavita likhne ka vada h

ek kavita hmesha
likhne ka sankalp h
जिस दिन नहीं लिखूं
तो, कुछ हफ्ते इंतजार करना
फिर भी लिखती नही दिखूं
तो, मान लेना कि
मै  जीवित नही हूँ
(और रहत की साँस लेना)

kyon lgta h

क्यों लगता है
तुम्हारा रूप पारदर्शी
क्योंकि, तुम्हारे सौन्दर्य के
उस पर भी
होता है, एक देवीय अहसास
जो ,तुम्हारी उन्मुक्त हंसी से
उपजा होता है
देता है दिलासा मन को
और ,तुम्हारे रूप की ओर
आकर्षित  करता है

मित्रता दिवश पर भेंट कविता की
जोगेश्वरी 

Friday, 2 August 2013

bahut sidhi poem h

बेहद सीधी कविता है

रात के आँचल में झिलमिलाते
जगमगाती चांदनी के फूल
दूर दूर तक खोई होती है
रात अपने ही आगोश में
चंद्रमा जब करता है सफ़र
उमगते ह्युए निशीथ में
रिमझिम बारिश के संग
भीगा होता है , हर समां
धुंधले वीराने तब महक कर
लगने लगते है जंवा जंवा
अंधकार का मटमैलापन
वर्षा में हो जाता है ,गाढ़ा
 

अभी इतनी ही लिखी है , ये कविता
जोगेश्वरी 

ehi aash

एही आस अटक्यो रहे ,अली कली के मूल

मेरी नही है , ये कविता , या कहे दोहा 

Thursday, 1 August 2013

ye kiski yadon ne

 अधूरी कविता , कल पूरी की

ये किसकी यादों ने
ली, दिल में अंगडाई
कि , तुम्हारी आँखों से
झलक पड़ा है ,यौवन
गुनगुना उठी है दिशाए
महकने लगे है ,वन-उपवन
ये किसकी परछाई
कसमसाई नैनों की झील में
लगता है ,जैसे सरोवर में
उतरा रहे है कमल
ये किसके अधरों ने किया है
आलिंगन का अनुवाद
कि ,आसमान तक
लहरा रहा है , तुम्हारा आँचल
वो,पहाड़ों पर छा रही है
घटाएं काली -मतवाली
लगता है ,जैसे आँखों में
आंज लिया है ,तुमने काजल

जोगेश्वरी