Tuesday 28 January 2014

तुम न दूर हो 
न पास हो 
तुम न ख़ुशी हो 
न उदास हो 
तुम तो मेरे ह्रदय में 
उमड़ती प्यास हो 
मेरी कविता मेरे जीवन कि आस हो 
मेरी धड़कन 
मेरी साँस हो 

तुम वंहा मिलना 
जंहा नित नयी बहार हो ,
जंहा तुम्हारा सलोना रूप हो 
तुम्हारा सरस प्यार हो 
जंहा तुम्हारा नूतन सृंगार हो 
सिर्फ प्यार ही प्यार हो 
फूलों के हार हो 
प्रियतमा तुम , वंही मिलना 
क्योंकि , तुम तो 
मेरे जीवन में 
प्रकृति का अनुपम उपहार हो 

Friday 24 January 2014

वधु 
घर में तो सभी आते है किन्तु जिंदगी में 
कोई एक ही आता है 
तेरा जिंदगी में आना ही बहुत है 

Wednesday 22 January 2014

कुलवधू 
जबसे तू घर में दिए जलाने आयी है 
मेरे मन से एक बोझ उतर गया है 
मन अब हल्का लगने लगा है 

Sunday 5 January 2014

nhi hota 
नही होता कोई कम 
नही होता कोई काम 
तेरा चेहरा देखे बिना 
पर तेरा चेहरा देखे बिना भी तो 
कोई काम नही होता 

नही होता कोई काम 
तेरा चेहरा देखने से 
पर तेरा चेहरा देखे बिना भी तो 
कोई काम नही होता 
झील सी
झील सी आँखे लिखी थी 
देखो ये रंग कैसे है चन्दन व् सुमन के अहसास करने वाली 
कभी तुम्हे ऐसा नज़ारा दिखाना है 
कि तुम मंत्र-मुग्ध होकर देखती रहो 
और तुम्हे देखते हुए देखते रहे 
 से आँखों वाली सुनो। ....... 
ये मेरी गज़ल नही है 
मुझे बेहद पसंद है 
वैसे तुम्हारी लबरेज नयन भी तो कुछ ऐसे ही है न 

Friday 3 January 2014

जितना
जितना कि तुम्हारे अधरों से 
ये फूल शब्द 
चन्दन जैसा तेरा रंग 
कितना अच्छा लगा था 
जब तुमने मुस्कराकर 
इतराकर 
मुझे ये फूल कहा था 
फूल यानि मुर्ख 
सच इतना खट्टा मीठा तो 
संतरा भी नही होगा 
जितना मीठा तेरे मुंह से 
ये फूल लगता है 
tumhari 
तुम्हारी आँखों में जो 
दरिया उतरता है 
उसमे खिले है 
कितने गुलाबी कमल 
कितने प्यारे गुलाबी कमल 
ये मेरी मोहब्बत की 
 मासूम प्यारी सी गज़ल 
तुम आज भी हो 
और कल भी रहोगी 
आबाद ,
ये है, मेरे दिल कि दुआ अविकल 

जान 
तेरी आँखों में जो इतना नशा 
छलका है 
कंही कंही , ये मेरे प्यार का तो नही 
और तेरे लबों पर मुस्कराहट 
उसका तो कहना क्या 

nav vadhu:  शोख  शोख ये तेरी शोख चंचल चितवन जिससे महका महक...

nav vadhu:  शोख
 शोख
ये तेरी शोख चंचल चितवन
जिससे महका महक...
:  शोख   शोख  ये तेरी शोख चंचल चितवन  जिससे महका महका  है  दिल का उपवन  बहुत याद आ रहे है ये फूल  दिल को मत जाना तुम भूल  तुम खुद हो ...
 शोख 
 शोख 
ये तेरी शोख चंचल चितवन 
जिससे महका महका  है 
दिल का उपवन 

बहुत याद आ रहे है ये फूल 
दिल को मत जाना तुम भूल 
तुम खुद हो एक ताजमहल तो ताजमहल 
तो, ताजमहल क्यों बनाये 
दिल के अरमानों को 
संगमरमर में क्यों दफनाये 
क्यों करे याद कुछ बनाकर  
तुम्हे सलामत रहना है 
जीवनभर 

ये इतनी जल्दी क्या है 
अभी तो पूरी कविता लिखी ही नही 
अभी से पब्लिश करना है , क्या 

Wednesday 1 January 2014

ये तेरी 
तिरछी चंचल चितवन 
चुरा लेती है 
देखने वालों का मन