हाँ , यहाँ , कैफ़े की भीड़ व् शोर में लिख रही हूँ
ये कविता, तुरत -फुरत तैयार डिश की तरह
जो, शायद तुम्हारी favorit हो जाये
की, आज भी याद आती
जब भी , तू, अपने घर में
दिए जलाती है
तू, आज भी , बेतरह से
याद आ जाती है
तब मेरी आँखों में
जाने कैसी धुंध सी
छा जाती है
बहुत प्रिय है, मुझको
तेरी मुस्कान की तरह
तेरी दिये जलाने वाली
जीवनशैली
दुआ करती हूँ
तेरी वो उजली मुस्कराहट
वक़्त की धुंध में
न हो, जाये मैली
ये कविता, तुरत -फुरत तैयार डिश की तरह
जो, शायद तुम्हारी favorit हो जाये
की, आज भी याद आती
जब भी , तू, अपने घर में
दिए जलाती है
तू, आज भी , बेतरह से
याद आ जाती है
तब मेरी आँखों में
जाने कैसी धुंध सी
छा जाती है
बहुत प्रिय है, मुझको
तेरी मुस्कान की तरह
तेरी दिये जलाने वाली
जीवनशैली
दुआ करती हूँ
तेरी वो उजली मुस्कराहट
वक़्त की धुंध में
न हो, जाये मैली
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