कुछ कवितायेँ, जो कल लिखी
साँझ जब तुम दीप जलावोगी
फिर कुछ याद कर मुस्करावोगी
सच उसी लम्हा , जाने क्यों
तुम, औरत से फूल बन जाओगी
खुद को सजाते -संवारते हुए
जब तुम कुछ गुनगुनावोगी
रजनीगन्धा की तरह तुम भी
तब रातों को मह्कओगी
एक कलश जल
जो,तुमने गंगा की लहरों से
उलीचा था
सच कहो,
क्या ,उसी क्षण
तुमने कुछ यादों को
नही सींचा था
जोगेश्वरी सधीर
साँझ जब तुम दीप जलावोगी
फिर कुछ याद कर मुस्करावोगी
सच उसी लम्हा , जाने क्यों
तुम, औरत से फूल बन जाओगी
खुद को सजाते -संवारते हुए
जब तुम कुछ गुनगुनावोगी
रजनीगन्धा की तरह तुम भी
तब रातों को मह्कओगी
एक कलश जल
जो,तुमने गंगा की लहरों से
उलीचा था
सच कहो,
क्या ,उसी क्षण
तुमने कुछ यादों को
नही सींचा था
जोगेश्वरी सधीर
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