Saturday 27 July 2013

tujhe bhul jana...

सच कामिनी ,
सोने का ये ढंग
कान्हा से सीखा है
चुनरी को
दन्त-पंक्तियों में दबा कर
मुठ्ठियों में
आंचल को भीच कर
जब तुम सोती हो
सरोवर में खिलती
कमलिनी की याद अति है
जो भ्रमर मन को बांध कर
प्रात तक नही नही पसीजती

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