Tuesday, 31 December 2013

ये तेरा शोख चंचल शबाब 

बाकि कल लिखती हूँ 

आज आदाब 

Friday, 27 December 2013

ये बिलकुल सच है कि मई अकारण ही ज्यादा बातें कह चुकी हूँ 

nav vadhu: कोई भीकोई भी बात हमेशा तो रस से भरी नही हो सकती ...

nav vadhu: कोई भी
कोई भी बात हमेशा तो रस से भरी नही हो सकती
...
: कोई भी कोई भी बात हमेशा तो रस से भरी नही हो सकती  एक ऐसा भी वक़त आता है कि कोई बात ही नही होती  तब, आप ये न सोचे कि बाते ख़त्म हो गयी है  ...
कोई भी
कोई भी बात हमेशा तो रस से भरी नही हो सकती 
एक ऐसा भी वक़त आता है कि कोई बात ही नही होती 
तब, आप ये न सोचे कि बाते ख़त्म हो गयी है 
ये समझे कि किसी नयी बात कि शुरुआत होने वाली है 

nav vadhu: बिना प्रेम के लोग जीते कैसे है जीने कि तो बात दूर...

nav vadhu: बिना प्रेम के लोग जीते कैसे है
जीने कि तो बात दूर...
: बिना प्रेम के लोग जीते कैसे है  जीने कि तो बात दूर  साँस कैसे ले लेते है  मई ये सोच के हैरान होती हूँ
हमेशा उत्सव के बाद होता है 
एक दिलफरेब मौन 
इसे हम सन्नाटा भी मानते है 
तब सोचते है कि 
कोई दिल के बहुत करीब रहे हमेशा 
                                                      
उसकी चितवन में थे कई मर्म कई भेद 
जो, उसने नही कहे किसी से और ओढ़ ली 
हमेशा चुनरी संग 
सल्लाज सी हंसी 
जो, उसने न किसी से कहा 
न चाहा कीकोई उसकी सुने 
इतनी मर्म-भेदी होती है 
उसकी दृष्टि 
जब वो, चुप सी कुछ सोचते हुए 
देखती है, कंही नही 

Thursday, 26 December 2013

आजकल दिल बहुत बीजी है 
बहुत व्यस्त है , दिल 

Wednesday, 25 December 2013


 नही पता 
क्यों आंखोसे 
इतने  आंसू आते है 
जब सुबह आँखे खुलती है 
तो, मेरी आँखे भीगी रहती है नही मालूम क्यों 
तेरे
तेरे रसीले नयना 
जवानी कि मस्ती में चूर 
कभी किसी पर नही रहम करती 
अपने रूप में रहती मगरूर 
जानेमन 
ये तुम्हारा पासवर्ड है 
या कोई महाकाव्य 
ये
ये शर्मीले नयन तुम्हारे 
और बांकी चंचल चितवन 
बातें तेरी रसीली 
तुम प्रीत का मधुब
ye तुम कहा जाती हो ये 
फूलों का गुच्छा हाथों में लिए 
और पीछे मूढ़ कर जब देखती हो 
आगे जाते हुए 
ये रशिली चितवन वाली 
सच मीठी  लगती है तुम्हारे 
तुम्हारे मुख से गाली 
 दिल दिल ऐसा किसी ने लुटा 
कि , उसी से हमे प्यार हो गया 
ये कैसी चली पुरवाई ,कि प्यार में जीना दुश्वार हो गया 

Tuesday, 24 December 2013

किसी को चाहो तो 
उससे ढेर सारा प्यार मांग लो 
इसपर भी मन न भरे 
तो, थोडा सा उधर मांग लो 

Friday, 20 December 2013

nav vadhu: चाहत में चाहत में हमेशा  तुम खुदगर्ज बन जाना  जिसे...

nav vadhu: चाहत में
चाहत में हमेशा
तुम खुदगर्ज बन जाना
जिसे...
: चाहत में चाहत में हमेशा  तुम खुदगर्ज बन जाना  जिसे चाहो  बीएस उसीसे  बॉस  बस उसीसे कुछ चाहना  जिसे नही चाहते  उससे क्यों मांगोगे  ...
चाहत में
चाहत में हमेशा 
तुम खुदगर्ज बन जाना 
जिसे चाहो 
बीएस उसीसे 
बॉस 
बस उसीसे कुछ चाहना 
जिसे नही चाहते 
उससे क्यों मांगोगे 
इशलिये, अपने 
प्यार पर हौसला रखो 
जंहा चाहो 
वंही पाने की कोशिश करो 
वंही, तुम्हे अख्तियार होगा 
कि, जिसे चाहो 
जंहा चाहो 
वंही तुम्हारा प्यार होगा 
पारिजात
पारिजात 
ये जो तेरा 
उन्मुक्त , उद्दात्त 
प्रेम व्यापर है 
प्रणय व्यापार है 
सच, एक दिन मुझे 
कंही का न रखेगा 
वो हालत होगी 
तेरी चाहत में कि 
जमाना मुझपर 
दिलखोलकर हंसेगा 
ये कभी सच न हो 

nav vadhu: तुम्हारा दिल तुम्हारा दिल जितना  इतना आसान नही था ...

nav vadhu: तुम्हारा दिल
तुम्हारा दिल जितना
इतना आसान नही था ...
: तुम्हारा दिल तुम्हारा दिल जितना  इतना आसान नही था  पर जित तो लिया  किन्तु, आखिर  जीत ही लिया  अब, ये न कहना कि  तुम्हारा दिल तुम्हार...
तुम्हारा दिल
तुम्हारा दिल जितना 
इतना आसान नही था 
पर जित तो लिया 
किन्तु, आखिर 
जीत ही लिया 
अब, ये न कहना कि 
तुम्हारा दिल तुम्हारे ही पास है 
सुनो
सुनो 
तुम्हे कोई फूल ,
कोई गुलाब नही भेजा 
क्योंकि 
तुमसे बढ़कर 
कोई, फूल क्या होगा 
एक, साथ , तुम्हारा 
मुझको प्यारा है 
किसी चमन में 
तुमसे प्यारा फूल क्या होगा 
सजती रहेगी , तुम्हारी हंसी 
लब पर 
खेलती कलियों कि तरह हंसी 
तुम्हे देखकर 
गुलशन को भी 
क्या कोई गुमान होगा 
हैरान होते है 
बाग़ के सभी फूल 
तुम्हे देखके 
तुम्हारी खूबसूरती का 
जलवा जब बिखर रहा होगा 

जोगेश्वरी सधीर 

nav vadhu: जब भी देखती हो जब भी मुस्कराकर देखती हो  सच दिल को...

nav vadhu: जब भी देखती हो
जब भी मुस्कराकर देखती हो
सच दिल को...
: जब भी देखती हो जब भी मुस्कराकर देखती हो  सच दिल को कलेजे से खिंच लेती हो  मृदुल मृदुल मुस्कान तुम्हारी  चटुल चटुल चितवन  प्यार ब्रिज ...
जब भी देखती हो
जब भी मुस्कराकर देखती हो 
सच दिल को कलेजे से खिंच लेती हो 

मृदुल मृदुल मुस्कान तुम्हारी 
चटुल चटुल चितवन 
प्यार ब्रिज का किशन कन्हैया 
तुम मीरा की मधुबन 

तुमसे रोज इतनी बातें कहने पर भी 
जाने क्यों लगता है कि 
कोई बात अधूरी रह गयी है 


मई
मै कविता लिखूं 
और तुम न मुस्कराओ 
ऐसा कभी हो नही सकता 
हो, भी तो 
मुझे नही होने देना है 
तुमसे
तुमसे इतनी बातें करने पर भी 
जेन 
जाने क्यों लगता है ,कि 
कोई बात अधूरी रह गयी है 
जानेमन
जानेमन 
जानेमन 
जानेमन 
ये तेरा पास्वोर्ड है या 
कोई महाकाव्य 
ये मृगनयनी
ये मृगनयनी 
तुझपर तो 
रातदिन कविता लिखूं तो भी मन नही भरता 

nav vadhu: एक वो दिन भी था  जब तुम चहकती  कूदती फिरती थी  सार...

nav vadhu: एक वो दिन भी था
जब तुम चहकती
कूदती फिरती थी
सार...
: एक वो दिन भी था  जब तुम चहकती  कूदती फिरती थी  सारे मोहल्ले भर में  हर और से  तुम्हारे नामके  पुकारे लगते थे  जिस और से  तुम गुजरती...

nav vadhu: एक वो दिन भी था  जब तुम चहकती  कूदती फिरती थी  सार...

nav vadhu: एक वो दिन भी था
जब तुम चहकती
कूदती फिरती थी
सार...
: एक वो दिन भी था  जब तुम चहकती  कूदती फिरती थी  सारे मोहल्ले भर में  हर और से  तुम्हारे नामके  पुकारे लगते थे  जिस और से  तुम गुजरती...

nav vadhu: ये ये  ये ये  ये रसभीनी बैटन वाली  बातों वाली  ये ...

nav vadhu: ये
ये
ये ये
ये रसभीनी बैटन वाली
बातों वाली
ये ...
: ये ये  ये ये  ये रसभीनी बैटन वाली  बातों वाली  ये मदमस्त निगाहों वाली  बिखरने लगी है  तेरे अधरों व् कपोलों पर लाली  कि, जिन्हे देखक...
ये
ये 
ये ये 
ये रसभीनी बैटन वाली 
बातों वाली 
ये मदमस्त निगाहों वाली 
बिखरने लगी है 
तेरे अधरों व् कपोलों पर लाली 
कि, जिन्हे देखकर 
देखनेवालों की 
नज़रें भी हो गयी है 
मतवाली 
ये लजीली चितवन वाली 
भली लगती है 
तेरे अधरों कि लाली 
ये गुलाबी कपोलों वाली 
ये मधुर बोलो वाली 
जब तू शर्मा के मुस्कराती है 
तो, कौन तेरे गोर गोर 
गोरे गोर गलों पर 
गुलाल मलता है 
आजकल, तो तुझपर कविता करने का ही रातदिन मन करता है 

nav vadhu:  ये ये जो निगाहों से तुम  पैने पैने वार करती हो  ज...

nav vadhu:  ये
ये जो निगाहों से तुम
पैने पैने वार करती हो
ज...
:  ये ये जो निगाहों से तुम  पैने पैने वार करती हो  जिंदगी पर  मौत का उधर धरती हो  जिंदगी पर मौत का उधार धरती हो  तुम्हारे रूप का रसपान ...
 ये
ये जो निगाहों से तुम 
पैने पैने वार करती हो 
जिंदगी पर 
मौत का उधर धरती हो 
जिंदगी पर मौत का उधार धरती हो 
तुम्हारे रूप का रसपान करनेवालो के 
दिल का सुखचैन 
तुम कैसे मुस्कराकर हरति हो 
हरती हो 

nav vadhu: कटरा कतरा कटरा  कतरा कतरा दिल मेरा लेकर  वो तेरा इ...

nav vadhu: कटरा
कतरा कटरा
कतरा कतरा दिल मेरा लेकर
वो तेरा इ...
: कटरा कतरा कटरा  कतरा कतरा दिल मेरा लेकर  वो तेरा इतराके निकल जाना  जाना जन ले लेगा  जाना जान ले लेगा  किसी दिन मेरी  तेरा यूँ मुस्कर...
कटरा
कतरा कटरा 
कतरा कतरा दिल मेरा लेकर 
वो तेरा इतराके निकल जाना 
जाना जन ले लेगा 
जाना जान ले लेगा 
किसी दिन मेरी 
तेरा यूँ मुस्कराके निकल जाना 

Wednesday, 18 December 2013

ए रस-नयना 
तुम्हारी रसीली चितवन से 
जो देखने वालों पर 
रस बरसता है 
जितना बरसता है 
मन उतना ही सरसता है 

ये जो निगाहों से
ये जो तुम निगाहों से 
पैने पैने वार  करती हो 
जिंदगी पर 
मौत उधर धरती हो 
तुम्हारे रूप का रसपान 
करनेवालों का 
सुखचैन 
तुम कैसे 
मुस्कराकर हरति हो 

जो तुम्हे देखे 
दिल उसका मचले नही 
ऐसा हो नही सकता 
ए रस भरी बैटन वाली 
ए रस भरी बातों वाली 
बिखरने लगी है 
जबसे , तेरे अधरों और 
कपोलों पर लाली 
देखनेवालों की 
नज़रें भी हो गयी है 
तबसे मतवाली 

nav vadhu: एक वो दिन भी था जब तुम चहकती कूदती फिरती थी सार...

nav vadhu: एक वो दिन भी था
जब तुम चहकती
कूदती फिरती थी
सार...
: एक वो दिन भी था  जब तुम चहकती  कूदती फिरती थी  सारे मोहल्ले भर में  हर और से  तुम्हारे नामके  पुकारे लगते थे  जिस और से  तुम गुजरती...

nav vadhu: एक वो दिन भी था जब तुम चहकती कूदती फिरती थी सार...

nav vadhu: एक वो दिन भी था
जब तुम चहकती
कूदती फिरती थी
सार...
: एक वो दिन भी था  जब तुम चहकती  कूदती फिरती थी  सारे मोहल्ले भर में  हर और से  तुम्हारे नामके  पुकारे लगते थे  जिस और से  तुम गुजरती...
एक वो दिन भी था 
जब तुम चहकती 
कूदती फिरती थी 
सारे मोहल्ले भर में 
हर और से 
तुम्हारे नामके 
पुकारे लगते थे 
जिस और से 
तुम गुजरती थी 
जैसे सर सर हवाओं के झोंके 
सर पर से निकल जाए 
ऐसे दुप्पट्टा लहराते 
बल खाते तुम जाती
गली के जिस मोड़ पर 
तुम थम जाती 
वंही सहेलियों का हुजूम भी 
ठहर जाता 
ए, रसीली नयना 
तुम्हारी मीठी मधुर 
रसभीनी रसबतिया 
कि फुहारों से 
सखियों का दिल भीग 
भीग जाता 
ए मृगनयनी 
फिर वो दिन भी आया 
जब बागों में 
खिली कलियों पर 
तुम्हारे रूप रंग का ही 
खुमार छाया नज़र आने लगा 
तुम कितनी मधुर 
और सुघर लगती रही 
और जब तुम 
सखियों संग 
गलियों से गुजरती 
हंसती विहँसती 
तो, जैसे राहें भी धमकती 
ये कमनीय कामिनी 
तुम्हारे रूप का सागर 
जब उमड़ने लगा 
उफनते समुद्र का ज्वार 
महसूस होने लगा 
जब तुम्हारे कपोलों पर 
दुधीलि रसभरी 
कच्ची कलियाँ चटकने लगी 
और तुम्हारे वस्त्रों से 
जानलेवा उभार झलकने लगा 
तुम तब 
बेपर कि परी लगने लगी 
तुम ठहरकर तब 
क्या सोचती होगी 
जब , खुद को शीशे में 
निरखकर , मौन होकर 
मुस्कराती हो 
और सबकी आँखों में 
तुम्हारा रूप चौंधिया जाता 
ये चांदनी रातों का 
सुरूर जगाने वाली 
तुम्हे देखने वालों की 
अआँखों कि नींद जब 
रूठ जाती है 
तब भी तुम 
भोरी भोरी 
फिरा करती हो 
ए ,बिल्लोरी आँखों वाली 
रस-नयना 
तुम्हारी मदहोश नज़र पर  
जब आशिकों के दिल 
लट्टू हो जाते है 
तब भी तुम 
दुप्पट्टे को बेख्याली में 
नटखट मुस्कान के साथ 
कन्धों पर झालकाकर 
दिल खिंच लिया करती हो 
सब कुछ जानकर 
अनजान बनने वाली 
ए नीरज नयना 
अनचिन्हों का दिल भी 
तुमने सहज में खिंचा था 
जब अपने साइन पर 
मुठ्ठियों में 
तुमने दुप्पट्टा भींचा था 
तुम कितनी सुन्दर हो 
कटीली चितवन से 
बूझो तो 
कि, आज भी जो 
धमक धमककर 
तेज तेज चलकर 
लड़कों के झुण्ड के सामने से 
बचकर निकलती हो 
सच तुम्हारे यौवन कि सौगंध 
तुम्हारी समस्त मांसलता 
देखने वालों कि 
आँखों में 
इठला इठलाकर 
उतरती है 
जोगेश्वरी सधीर कि लम्बी कविता 

Tuesday, 17 December 2013

कविता
कविता 
सारा दिन कविता लिखने कि कोशिश क्र रही हूँ 
बस मेरी कविता पढ़के तुम सर मत पकड़ लेना 
कविता है 
सारा दिन तेज हवाए चलती है 
पत्नी ने कहा 
सुनो जी , सारा दिन तेज हवाएं चलती है 
इस पर पति ने झुंझला के कहा 
इसमें भी क्या मेरी गलती है 
पत्नी सोचती है 
क्या यंही वो शख्श है 
जो, शादी के पहले हाथों में हाथ लेकर 
कहा करता था 
जब भी हवाएं चलती है 
तुम्हारी यादों के संग सिहरन सी होती है 
शादी के बाद बीबी से इतनी कटखनी रिस्तेदारी क्यों चलती है सोचती हूँ अक्सर 
सारा दिन क्योंकर तेज हवाएं चलती है 
ओ पिया 
जलाके तुमने दिया 
जीवन से लौ लगा दी 
जीवन कि ज्योत जगा दी 
ओ पिया 
जलाके तुमने दिया 
मुझे जीने को मजबूर क्र दिया 

Saturday, 14 December 2013

ये
ए चंचल सौदामिनी 
तेरी चितवन ऐसी 
कि लगता है 
सागर में नाव के मस्तूल 
छूट गये है 
ये कच्ची कविता है 
तेरे चन्दन जैसे रंग के नाम 
जब भी तुम्हारी बात निकलेगी 
सब यंही कहेंगे 
तुमने कितने अहसान किये है 
मुझपर 
मुस्कराकर 
और फिर उन्हें भुलाकर 
ये
ये जो हवाएं तेज तेज चलती है 
और बेख्याली में ही 
दिन ढल जाता है 
रात  भर जागकर 
तुझे याद करने के बाद 
पता चला कि 
मै तेरे प्यार में हूँ 
सोच नही सकती 
रह नही सकती 
जी नही सकती 
प्रेम के बिना 
भी है, कोई जीना 

Friday, 13 December 2013

प्रेम का कोई विकल्प नही है 
प्रेम के बिना जीने का कोई अर्थ नही है 
बिना प्रेम के लोग जीते कैसे है 
जीने कि तो बात दूर 
साँस कैसे ले लेते है 
मई ये सोच के हैरान होती हूँ 
 जिन्दा या मुर्दा कोई सवाल नही 
सिर्फ , इतना कहो, कि 
प्यार है कि नही 
कल चाहेंगे या नही 
ये मत सोचो 
बस इतना कहो 
प्यार है कि, नही 
एक
एक तेरे बिना कोई बात नही 
जो तू न मिले तो मुलाकात नही 
तू कहे नही तो दिन नही , रात नही 
आलिंगन को अतृप्ति कि सौगात सही 
हमेशा 
हमेशा  अधूरी सी मिलकत रही 
हमेशा अधूरी मुलाकात रही 
अतृप्त आलिंगनों में जगती रात रही 
ये अतृप्त  आलिंगनों कि रात है 
याद आ जाती जब तुम्हारी बात है 
कटती कंहा तब जाड़ों कि रात है 
तुमसे हुयी पहली मुलाकात है 

Thursday, 12 December 2013

आजकल अक्सर हवाएं चंचल होकर बहती है 
सोनू बहुत कम बोलता है 
वो, ये भी  चाहता कि कोई 
उसके सामने ज्यादा बोले 

Monday, 9 December 2013

ए , तेरी हर अदा ,
जैसे शरद कि रातों कि 
सौगात है 

Saturday, 7 December 2013

यदि आपकी आँखे हमेशा उदाश हो 
तो कोशिश करो कि , आप 
हमेशा ह्रदय से खुश रहने कि 
इससे आँखों कि उदाशी दूर होगी 
आप अपनी आँखों से पूछो 

आप अपनी आँखों से पूछो 
कि, वो कंहा और क्या ढूंढ़ती रहती है 

Friday, 6 December 2013

जेन 
जाने मन 
तुझमे ही क्यों 
उलझा रहता है 
मेरा मन 
ये 
तू ही बता 
क्या जादू करती हो 
या ,सम्मोहन 

Thursday, 5 December 2013

क्यों आती हो , इतना याद 
कि तुम्हारी याद के बाद 
फिर कुछ नही रहता याद 
तुम्हारे बिना कुछ भी नही  है , कंही 
तुम हो तो,सबकुछ अच्छा लगता है 
नही पता इस फरेबी दुनिया में 
तुम जैसी भोली भली कैसे रहती हो 
मेरी प्यार 
तुमने मेरे प्यार को 
बहुत अच्छी तरह सम्भाला है 

Tuesday, 3 December 2013

बहुत अच्छी लगती हो 
जणू जानु जानु जानु जानू जानू 
एक 
एक तेरे आ जाने से 
जिंदगी इतनी हसीं कैसे हो गयी 
ये आजतक नही समझा 
तुम्हारे होने भर से 
जिंदगी होने का अर्थ है 
तुम अच्छी लगती हो 
क्यों लगती हो  इसका तो कुछ पता ही नही 
जानने कि कोशिश ही नही कि 
कि  तुम क्यों अच्छी लगती हो 

Monday, 2 December 2013

तेरे 

तेरे बिन जिंदगी , इतनी आसान तो नही थी 
मुसीबतें तो थी, तेरी मुस्कान संग न थी 

Friday, 29 November 2013

बिन तुम्हारे अच्छा नही लगता 
किन्तु , क्या याद काफी  नही 
फिर किसी बिना जीने कि आदत हो जाये 
ये जरुरी तो नही 

Wednesday, 27 November 2013

मन्नू -मुझे अंग्रेजी आती है, आप मेरी जग हंसाई मत करिये 
रम्भा- हंसकर )-वो तो देख ही रही हूँ 
मन्नू-खुद को ढकते हुए )-आप इधर उधर मत देखिये, हम अभी अंग्रेजी सिख क्र अत हूँ 
मन्नू एक बाज़ार में जमीं पर लगी दुकान में जाता है 
मन्नू-भैया , फटाफट , एक अंग्रेजी सिखने कि किताब दे दीजिये , मुझे एक अप्सरा को प्रेस करना है 
दुकानवाला- ये ले जाओ, तुम एकदम अंग्रेजी में ही हंसोगे रोओगे 
मन्नू- लेकिन, भैया, ये तो अंग्रेजी में है, हमे हिंदी में अंग्रेजी कि किताब चाहिए 
दुकानवाला- तो, ये ले जाओ, फूल हिंदी में पुआर अंग्रेजी 
मन्नू-वा वाह , का बात है , कसम भूरि भसीन के दूध महीने  में  
नींद गयी 
नींद गयी,
चैन गया 
दिल का करार गया 
तेरे साथ , मेरे सनम 
कैसे बताये 
क्या क्या गया 

Tuesday, 26 November 2013

तुझसे अच्छा 
तुझसे अच्छा विकल्प कोई दूसरा तो है नही 
जंहा तेरे बिना कोई सुकून मिले 
जितना तुझे चाहे 
तुझसे उससे ज्यादा सुकून पाये 

Monday, 25 November 2013

तेरा गरूर कभी चूर चूर न हो 
तू अपने दिलबरसे ,कभी दूर न हो 

Saturday, 16 November 2013

याद    है 
याद है 
जब गुलमोहर कि 
झरी हुयी पखुरी को 
अपनी अंजुरी में भरकर 
तुमने मुझसे कहा था 
i love u

Monday, 11 November 2013

आज भी मन नही लग रहा है 
रोज तितलियों को देखती हूँ 
समंदर के सपने आते है 
मन कंही नही लगता बेटे के लिए 
बहुत कुछ करना है 
आज तक तो अपने लिए ही सब करती रही हूँ 

Saturday, 9 November 2013

हमेशा दूसरों का  बहलाऊ 
ये जरुरी नही 

Friday, 8 November 2013

जब तुम्हे प्यार कहे कि, करो 
तो, प्रेम कि सीमा नही होती 
गलत कौन लिखता है 
मैंने लिखी थी, कि 
सोनू के लिए बहुत सी परियां  हो 
ताकि उसका दिल लगे 

Thursday, 7 November 2013

सोनू के साथ वंहा जाना चाहती हूँ 
जंहा बहुत साडी पारियां हो 
जंहा सोनू का दिल लगे 
वो, उस तनाव से मुक्त हो जो उसे विरासत में मिला है 

Wednesday, 6 November 2013

मंकी मंकी 
मंकी 
माआअंकी 
मानकी बोझिलता कम नही हो रही है 
उदाश हो जाती हूँ 

Tuesday, 5 November 2013

आपने आप को बर्दास्त करना सबसे ज्यादा कठिन होता है 
तुम्हारे जेन के बाद कुछ भी नही रहा यद् 
तुम्हारे जाने के बाद 
कुछ भी नही रहा याद 
कोई किस्से करे फरियाद 

आपकी खुसी में हमारी ख़ुशी 
जो मन में बसे , वो उर्वशी 

Saturday, 2 November 2013

कल   छत पर सांझ में टहल रही थी 
बारिश कि यद् आयी 
उड़ते हुए पखेरू देखकर सोचती हु बहुत भावुक हो जाती हु  
ये कहता है , बारिश का महीना 
तेरे बिन मुस्किल हुवा जीना 

Monday, 28 October 2013

 आज देख लूँ तुम्हे जी भरके 
कल रूमानी तबियत हो न हो 
झील सी आँखों वाली सुनो 

Sunday, 27 October 2013

देख रही हूँ , नववधू ब्लॉग यदि पुराना लिखा नही होगा तो, समझो मेरे पास कुछ भी नि है 
मई कुछ भी कॉपी नही कर रही हूँ 
तुमसे  दूर रहकर 
उदाश रहता है दिल 
तुम साथ न दो 
तो, हो जाती है ,
मुश्किल 
बहुत  दिन हुए 
नही हुयी थी 
तुमसे कोई बात 
यंही सोचते हुए बीत गयी थी 
कल की रात 

tum jo bhi ho


तुम जो भी हो 
ये समझ लेना 
जिंदगी नही होती 
तुमसे अलग 
जिंदगी नही थी 
कभी तेरे आने के पहले 
न होगी 
तेरे जाने के बाद 

rahbar

गंगा तट पर 
चलते हुए 
तुम्हारे पद चिन्हों को 
सहेज लिया है ,मैंने 
उस राह्पर 
उस रह से 
किसी को 
गुजर जाने नही दिया 
हमने 

Thursday, 24 October 2013

sahra sahra

सहरा
सहरा सहरा फुल खिले है 
जब भी प्यार में 
दो दिल मिले है 

अभी लिखी ये कविता 

pyar ki umr

प्यार की उम्र का  वो दौर 
जब न जिया जाता है 
न ही मर सकते है 
बीएस एक जगह ठहरा सा 
जमा हुवा अहसास होता है जो, 
जो, तमाम उम्र साथ चलता है 

vo, surmai andhra

वो  आसमान  में चमकते सितारे 
वो , सुरमई  अँधेरे 
झिलमिलाते तारों के उजारे 
कुछ कहती हुयी 
गुनगुनाती हुई 
गुजरती जाती रात 
इसे में , अचानक हो गयी 
बिच में बावली बरसात 
आधी  रत की निश्त्ब्धता में 
गूंजता पपीहे का राग 
दिल में अधूरी रह गयी 
कोई, भूली बिसरी साध 
रह जाती है 
जाने किस कोने में सिमटी 
सखी सहेलियों की 
हंसी -ठिठोली की बात 
जाने कन्हा खो जाते है , स्वप्न 
और छुट जाते है 
साथ चलते चलते हाथ 
खो जायेंगे हम कंही तो 
रखना तुम हमको याद 

Monday, 21 October 2013

kuchh jlnshil tatv

कुछ लोग जलनशील होते है
यदि वो किसीको, जरा सा भी
संतुस्ट देखते है
तो, उनके मन को दुःख होता है 

Sunday, 20 October 2013

sadhya-snata

स्ध्यस्नाता 
रूप तुम्हारा 
जैसे क्षीर सागर का 
फेनिला ज्वार 
जैसे सर्दी का नया नया 
माह , क्वांर 
जैसे चांदी  के कलश 
पर दूध के छींटे 

Saturday, 19 October 2013

kavita likhe bin

कविता लिखे बिना 
नही मिलेगी मुक्ति 

kuchh tere rup ka tikhapan

कुछ कुछ 
कुछ तेरे रूप का तीखा-पन 
कुछ तेरे मिजाज की गर्माहट 
तेवर तेरे तेज तेज 
लगते है , चंद्रमुखी 
जब भी दिखती हो 
नाराज सी लगती हो 
न पहली सी बोली 
न वो हंसी ठिठोली 
लगता है , तुझे गुस्से में देख 
कि , मेरे कलेजे में लग गयी है  गोली 
(गोली , means  बन्दुक की 
वो फालतू नही सोचे )

pahle to email glt likhi

 आज तो कविता नही लिखूंगी 
सर में बहुत दर्द है 
और बुखार भी है 

thik nhi swasthay

आज बिलकुल ठीक नही लग रहा
नही पता क्यों नाराज रहती है 
थक गयी 
पहले तो ब्लॉग ही नही मिला 
जब मिला, तो कोई कविता 
लिखने का मन नही 

pahle to pc nhi chala

मूड ऑफ़ हो गया 
पहले तो pc  नही चला 
क्या खाक कविता करती 

Thursday, 17 October 2013

thanks

जो, आज तुमने उपहार दिया 
ये जो प्यार दिया  सोनू के जीवन में 
नई उमंग बनके समा जाओ 
तुम्हारे आने से 
बहारें  आई है 
रीतों ने ली 
अंगड़ाई है 
सोनू, रीते ह्रदय से 
देखा करता ह चंद्रमा 
जल्दी में क्या लिखू 
उसके सुने जीवन की तुम ही हो 
चंद्रज्योत्सना  

Saturday, 12 October 2013

dil kyon dhadkta h

kisi ne likha tha
puchha tha
ki, 
ye dil kyon dhadkta h
ye dil kyon dhadkta h
dil kyon dhadkta h
iska jwab mile
to, samajhna
sabkuchh jan liya

Friday, 4 October 2013

jb bhi socho, to

jb bhi socho, to
ynhi sochna
ki hr vqt nye git likhu
nye git gungunau
kabhi knhi
thak ke 
ruk na jaun

Thursday, 3 October 2013

jindagi me honge, sach sapne

jindagi me jb awasar milega to
mai selulide pr nava-vadhu ko
sakar krungi
ye bahut h, achchi film hogi

Wednesday, 2 October 2013

nav vadhu: jb tu lahra kr

nav vadhu: jb tu lahra kr: jb tu lahra kr jb jb tu lahrakr,  bl khakr ghar me aati to kaise na basant ata jb tu achkcha kr muskrakr chunar lahrati to kaise n...

jb tu lahra kr

jb tu lahra kr
jb
jb tu lahrakr, 
bl khakr
ghar me aati to
kaise na basant ata
jb tu achkcha kr
muskrakr
chunar lahrati to
kaise na basant ata
jb tu vihansti aankhon se
ras brsati to
kaise na basant ata
jb tu ljakr
tirchhi chitvan se bulati to
kaise na basant ata

but who is, this basant

Tuesday, 1 October 2013

ivan ke prati

jivan ke prati
neh jgati
tum mujhe
ese mil jati
jaise sneh bhari 
saras prem pati

jb vo

jb vo apni
nnhi hatheliyon me
tera anchal khinchega
tb, uski
masum athkheliyon me
mera dular dikhega

nurag bhra

priye, anurag bhara
snigdh rup tumhara
lgta hai jaise
kisi ne
dahi ka sagar 
math dala

mukhda tera

mukhda tera
chandani se dhoya huwa
lgta h, ese, mano
dahi ho, biloya huwa

Monday, 30 September 2013

k, shar

ye kisi ka sher h
abke bichhade hm, kuchh ese rangile ho gye
meri aankhe surkh, tere hath pile ho gye

hldi chandan se

haldi chandan se racha bsa ye, tera badan
bhauron ki gunjan, foolon ki chubhan

Sunday, 29 September 2013

nav vadhu: e geshu tere

nav vadhu: e geshu tere: ye  geshu tere bikhre bikhre jyoti kalash nikhre nikhre bhav-sindhu me ho jyon moti, chhitre chhitre

ye rup salona

ye rup salona
soya huwa
madhur bhavon me
khoya huwa
priye, lgta hai
rang tumhara
jaise dahi h
biloya huwa

e geshu tere

ye geshu tere
bikhre bikhre
jyoti kalash
nikhre nikhre
bhav-sindhu me ho
jyon moti, chhitre chhitre

priye, anurag bhara

priye
anurag bhara 
snigdh, rup tumhara
lgta hai, jaise
kisi ne
dahi ka sagar
math dala

koyal ki kuk

koyal ki kuk se
jo, uthti hai huk

fir sochke likhenge
bye nav-vadhu

titli jaisi ldki

titli jaisi ldki
krti hai, thitholi
vo, bad masi ki miau....

e git bhi

koyal si teri boli
surat hai, kitni bholi

ye git maine nhi likhi

aaj ka git hota

kabhi tera daman na chhorenge hm

ye maine nhi likhi hu

Wednesday, 25 September 2013

Tuesday, 24 September 2013

teri churiyon ki khanak

teri chiriyon ko khanak
teri jhanjhar ki jhankar 
tere ane ke pahle krti hai
tere ane ka ijhar 

meri ek purani kavita

hldi chandan se

hldi chandan se racha ye tera badan
ghar grasthi bsane ki ye teri lagan

Tuesday, 3 September 2013

kabhi pyar ka diya jlana

इतने दिये जलाती  हो
घर द्वारे को जगमगाती हो
कभी एक दिया
प्यार का भी जला देना 

hari hari churiyan

हरी हरी चुरियाँ
हरी हरी चुरियाँ
हरी हरी चुरियाँ
कभी न हो
दिलों में दुरियाँ 

Friday, 30 August 2013

ye pranpiriya

ये प्राणप्रिया
ये, जो, मैंने
तुम्हारे आँचल पर
अर्ध-रात्रि के गीत लिखे है
वो, एकांत निशाओं का
महाकाव्य
तेरे अद्वितिव सौन्दर्य से
रस-सिक्त हो उठा है
कामिनी
ये  तेरा कैसा म्रदु-हास् है
जो, युगों युगों की
प्यास जगता भी है
 बुझाता भी है

ओ चित्त -हरिणी
अपनी नाजुक उँगलियों से
उकेर कर रंगों का अपूर्व संसार
जगा दिए तूने मेरे
युगों युगों से सुप्त
प्रेम-राग

तुम्हारी हंसी
और, नदी की धार  के बीच
कुछ भी तो, नही
 सिवाय,मेरे प्यार के

Thursday, 29 August 2013

tera nikhar

ये जो , अविराम
अभिसार से उपजा
तेरा श्लथ निखर

ये जो तुम
धीमे से हंसकर
हौले से बोलती हो
जैसे मिश्री सा
मेरे जीवन में
रस घोलती हो 

mujhe gyat h

मुझे ज्ञात है
शांत एकांत में
प्रगल्भ क्षणों में
उसकी तेज दृष्टी को
निरख कर
तुम चुपके से उसे
जानू कहके मुस्करा ओगी
 ह्रदय से चिपटा कर
मेरे अहसास पाओगी

तुम अक्सर विहंस कर
उसे जानू कहके बुलओगी
और उन लम्हों में खो जाओगी
जो, हमारे बीच बहे है 

vo udit ho raha, bhor ke tare ki trh

ये उमगा , वो आम्रपगा
मेरी जन्म की ऋतू में
वो, भोर के तारे की तरह
उदित हो रहा है
 दिशाएं निर्मल होने लगे
जब,नदियों में जल का भराव हो
इसे शरद की भोर में
ऋषियों के  मुहूर्त में
उसका उदय अवश्यम्भावी है
वो मेरे सात्विक गाम्भीर्य
और तेरी चपल चंचलता से भरा
वीरोचित व् साहसी होगा
तेरे सुंदर मुख की अनुकृति
विहंसते अधरों से
मोहित करता आ रहा है
तेरे आँचल में प्रसून सा खिलता
पूनम के चंद्रमा सा निखरता
जब, वो अर्धुन्मिलित दृष्टी से
तुझे, टुकुर टुकुर निहारेगा
उसकी(बालक ) बालसुलभ निगाहों में
तुम्हे, मेरी बेधती नजरों का
अहसास होगा
वो, तुम्हारे ,जलाये दीपों का
जगमगाता उजास होगा
सोनू की तरह , चौड़े स्कंधों से युक्त
सिंह सा प्रतीत होता
वो, राजसी चल से चलता
स्वत बनकर सबका चहेता
वो, शाश्त्रों का उद्वेत्ता
मुझ सा जिग्याशु चिन्त्नन्वेता
देवताओ से आशीष लेता
वो, मेरी तरह, तेज से अभिसिक्त
तेरी कोख में प्रभामंडल सा
तेरे जीवन में छा रहा है
वो, जज्ल्व्मान नक्षत्र सा
तुझसा मन मोहता
तेरे जीवन साथी की तरह
तुझपर अविच्छन्न
स्नेह लुटाने
तुम्हे अपने में समाहित करके
वो, वीरोचित अभिमानी
संस्कारी द्विज सा
शास्तों का प्रणेता
मुझसा, स्वत प्रतिभा से
अनुप्राणित
तेरे आँचल में खेलने
मुस्कराता हुवा
निश्छल प्रभाष सा
सागर सरीखे , विस्तृत ह्रदय वाला
नभ के विस्तार युक्त
प्रखेरुओं सा उन्मुक्त विचरता
पराक्रमी योद्धा सा
विहँसता मचलता
तेरी गोद में खेलने आ रहा है
उठ मानिनी
तेरे बरसों के स्वप्नों का
साकार समुच्चय
तेरा दुलार पाने
सबका मन बहलाने
तेरा मन बढ़ाने
तुझे पल पल रिझाने
दिसम्बर के आसपास आ रहा है
वो, भोर  का तारा
अनुराग हमारा
अध्खेली करता
राग जगाता आ रहा है  

rup tera chaundhiyata

रूप तेरा चौंधियाता
नजरियों से सींचा सींचा
दुप्पट्टा तेरा उड़ उड़ जाता
मुठ्ठियों में भींचा भींचा
तेरा लौंग गव्च्छा
मिर्च जैसा तीखा तीखा
उपमानों से चित्र तेरा
चंद्रमा जैसा खींचा खींचा
(इसका मतलब ये नही, की खिंच के तुम तमाचा जड़  रही हो )

janbujh kr nhi likh rahi

जो, कविता लिख रही
वो जानकर बनाकर नही लिख रही
जो, भीतर से आ रही है
वन्ही लिख रही हूँ
इसमें मेरा कोई प्रयास नही है 

ye teri banh pr ksa huwa

ये तेरी बांह पर कसा हुवा
बाजूबंद
कर  देता है ,देखने वालों के
होशबन्द
पायल तेरी नदियाँ की लहरे
करे ,झम झम
बिजली जैसे झलके
तेरी कमरिया का कबंध
मत खोल झुककर
पायलिया के बंध
होश उड़ा रहे है , सच
तेरी , हंसी की सौगंध 

kisne kaha h,itna ka krne

बावली , ये क्या बचपना है , तेरा
किसने कहा है , तुम्हे
कि रत दिन काम  करो
करो पर, कुछ कम करो
आखिर , तुम्हे अपनी भी परवाह करनी चाहिए
आशा है , इसे अन्यथा नही लोगी
और अपने आप का ख्याल रखोगी 

Wednesday, 28 August 2013

jlte diyon sang

जलते दीयों संग
ये जो, तुम्हारा रोमांस है
सच ये अहसास
प्रेमपगा
युगों युगों तक
जीवित रहेगा
मेरी कविताओं में
तेरे अप्रतिम रूप की
दीप्त छटाओं संग
ओ, दीपशिखा

2  दीपशिखा
दीपशिखा
कोई तुझसा सुन्दर
मुझको नही दिखा
दीप जलते हुए
मुस्कराते हुए
तेरा म्रदु हास्
जगता है ,प्रेम का
अविचल अहसास
बांधने  लगता है , ह्रदय को
स्वत , तेरा प्रेमपाश 

ghar ke, tumhare.....

 घर के तुम्हारे
साझ सम्भार में
छिपा है , कितना
तुम्हारा प्यार
तेरे ये साँझ संवार
घर के कोने कोने को
देते है , आत्मीय दुलार
उत्कंठा से ,तुम्हारा
वो करना सबका सत्कार
जिसमे छिपा होता है
तेरा मनुहार
ये तेरे प्यार से सजा
निखरा , सुशोभित संसार
कंही किसी की मलिन दृष्टी
से न हो , कोई व्यवहार 

fir chandani rat me

फिर चांदनी रात में
वन्ही तन्हाई होगी
वन्ही उबशियाँ होगी
डूबी होगी रात
अपने ही आगोश में
वन्ही अलमस्त
फिजायें होगी बदहवाश
बीएस, हम तुम
जुदा जुदा होंगे 

vo aayi is trh

और सुनो
वो आई इस तरह , जैसे मंडवे में कलश
बना रहे बनारस

मंडवे से मतलब है , जो विवाह में मंडप डाला  जाता है , उसमे सुहागिन , आती है , नेग में कलश लेकर , वो भी दुल्हिन से कम नही सजी होती
दूसरा है
वो आई इस तरह , जैसे चौक पर कलश
बना रहे बनारस
चौक, वो रंगोली है , जिसे वधु के बैठने के लिए , बनाया , या पूरा जाता है
हमारे गांवों में इस चौक को एक कमल के यंत्र की तरह बनाते है , मंडवे में बहुत सी सुहागिनें चौक बनाती है , जो की बहुत ही रंगों भरा सुंदर चित्रांकन होता है
गांवों की इस लोककला को सहेजने की जरुरत है 

chhammakchhallo

छम्मक्छल्लो
कैसी हो
आजतो,गज़ब का श्रिंगार किये हो
एक शे'र सुनो
सर से पांव तलक एक अदा छाई हुयी है
उफ़ ,तेरी मासूम जवानी , जोश पर आई हुयी है 

siskiyon ke bich

सिसकियों के बीच
जो, तुम्हारे आंसू
मैंने डिब्बी में सम्भालकर
रख लिए थे
कुछ दिनों बाद देखा
तुम्हारे वो आंसू
अनमोल मोती बन थे
    सच pear

Monday, 26 August 2013

kya sochte hai

क्या  सोचते है, आप
प्यार करना खेल है
हर पल
कतरा कतरा
अपने ही दिल का
करना होता है , खून
कम नही होता है, जूनून
हंसता है, वो शख्स
ओ, प्यार में रोता है 

seperation

if sepration is essential
i know
i except
then, u shuold dislike
that's first condition
&other is,
sweetheart
u, shuold hate my poetry
my self


tum dur kya gye

वो तारों को तोडके लेन की बातें
मेरी आँखों में
वो, तुमसे मिलन के
सपने झिलमिलाते
वो, beintha बातें
तुम दूर क्या गयी
रातें दूर ले गयी
आँखों से
सपनों की सौगातें 

Sunday, 25 August 2013

jis pal

जिस क्षण तुमसे
अलगाव होता है
ये मन, उसी क्षण
तुमसे जुड़ने के
बहाने dhundta  है

जाती हो, तो जाओ
मुझसे दूर
मेरा हाथ छुड़ाके
न ही एक  को ठिठकना
न, ही पीछे मुडकर देखना
न ही कभी भूलकर भी
 मेरी बातों  को याद  करना
न , बेख्याली में
मेरे गीत गुनगुनाना 

Saturday, 24 August 2013

dur tk jayegi

दूर तक जाएगी
वो नव, लेकर तुम्हे
नदी के उसपर
तुम्हारे गाँव
जन्हा बसा है
तुम्हारा नया संसार
इस पर है
मेरी नियति
और वो, अनब्याहा
सपनों का अभिसार 

navvadhu ne puri ki, 4 centuri

मेरे ब्लॉग, टाइटल
नववधू ने
अपनी चतुर्थ centuri
यानि शतक
पुरे किये है
आप सभी के
प्यार को
मेरा आभार
व् शत शत नमन 

nithur raton ki

निठुर रातों की
न करना कोई बातें
न करना मुझसे
कोई शिकायतें, रे मन
ये तो अति जाती है
चंद्रमा की दशाओं की तरह
बस , एक जैसी रहती है
कोरी कुंवारी तन्हाई
जोगेश्वरी 

nav-vadhu

नववधू
चांदनी रात में
झिलमिलाते तारे ही
या,मेरी आँखों में
झिलमिलाते आंसू ही
तुझसे जुदाई के ,
सोचके न होना
तुम उदाश
क्योंकि
मेरी निश्ताब्ध निशाओं में
मेरे घर आकर
तुम्हारे जलाये दीयों का
कभी न मद्धिम होगा
जगमगाता प्रकाश
जाओ तुम अब
ख़ुशी ख़ुशी
अपनी घर की देहरी पर
दीप जलाना , और
अपनी दिलकश
मुस्कराहटों से
अपने सजन की
रातों को सजनो
अपने घर को
अपने प्यार से महकाना
जोगेश्वरी 

fir chandni rat me fir

फिर चांदनी रात में
वन्ही तन्हाई होगी
वन्ही उबशियाँ होगी
डूबी होगी रात
अपने ही आगोश में
वन्ही अलमस्त
फिजायें होगी बदहवाश
बस हम तुम जुदा जुदा होंगे
कुछ भी तो
नही बदला होगा
पहले से अलग
२। …….
चांदनी ने लिखी होगी
तुम्हारे गोर मुख पर
जुदाई की बातें
आँखों की कोरों से
सब्नम की तरह
अनकहे , आंसू बह जाते 

vo taron ko todne ki baten

वो तारों को तोड़ने की बातें
मेरी आँखों में
वो सपने झिलमिलाते
वो, beintha बातें
दूर तुम क्या गये
रातें भी दूर ले गयी
मेरी आँखों से
सपनों की सौगातें 

apne pyar ko

अपने प्यार को
पाप से
अनैतिकता से
अनाचार से बचाना है
तो ,
मत देखो
नजर उठाकर
अपने प्रिय को
यदि नजरें उसकी ओर
उठने लगे तो
अपने मन के अश्वों को
लगाम दो
और प्रायश्चित  करो
जीवन भर
सर झुकाकर
एकाकी , जीवन भर 

dhalti sanjh me

ढलती  साँझ में
थपकी देती हवाएं
डूबते सूरज संग
सिहरती घटाएं
वो,  कौन सा दिन था
जो, तेरे ख्याल बिता
बेगानी सी लगती है
अब निररुद्देश निशायें 

Friday, 23 August 2013

ratri me

रात्रि में , सोये हुए
तेरे निन्द्रित मुख की
निरखकर छटा
लगता है , जैसे
सावन की निविड़ रातों में
 झूम रही हो
मतवाली , बावरी घटा
ओ, बावली
अपने चंद्रमुख से
ये, केशों की अलकें तो हटा
देखूं तेरा
पूनम के चाँद सा
उजला चमकता मुख
ह्रदय ने पाया है
जैसे तुझे निरखने का
जन्मों जन्मों का सुख 

dekh to, uthkr

देख तो, उठकर जरा
ओ गंभीरा
कैसा नीरव रात्रि में
सावन झूमकर बरसता है
तब तेरे रूप को निरखने
प्रणय-अनुरागी मन
चातक  सा तरसता है
हे, मेघसुता
तू, करके , जब
भादों की बिज्रियों  का श्रंगार
जब जब आती है
मेरे मन के द्वार
तो, निरखकर
तेरा यौवनोंमुख मुख
मन हो जाता है
प्रणय के लिए, अधीर

aj prath se

आज प्रात से
जब हवाएं घूम रही है
 दिशाओं में अकुलाई सी
 में नींद में लगती हो
विहंसती कुनमुनाई सी
ओ , हंसनी
तुम्हारे मुग्ध करने वाले
नैन बाण ,निरखकर
मोहित  हुए है
मेरे प्राण


Wednesday, 21 August 2013

kantar....

कान्तार
तेरे रमणीय अहसासों से
सज गया है
मेरा ह्रदय प्रान्तार
देख ,कैसा मेघ
नित बरसता है
आकाश ,धुशर होकर भी
नित , नूतन लगता है
जाने ह्रदय के किस कोने में
 करती हो ,तुम विश्राम
कि ठिठक के
बज  उठे है
मन वीणा  के प्राण

जोगेश्वरी 

Saturday, 17 August 2013

tere aspas

तेरे आसपास
मेरे दिल के अहसास
क्या  यंही है
प्रेमपाश 

Thursday, 15 August 2013

kavita likhne ke liye

kavita likhne jaruri nhi ki, aap bndhi bndhayi lik pr chale
यदि, मै कोई तुकबन्दी करूं , तो उसे कविता नही कह सकते
कविता  पहले आप कोई माहौल को याद कीजिये
फिर उसे कागज के हवाले कीजिये
वैसे कविता तो ह्रदय से स्वत ही निकलती है
आप जब अपनी कविता खुद ही लिखेगे , तो आपको बेहद ख़ुशी होगी
जैसे , रात हो,
सावन की जिन्गुरों से गुंजित रात हो
आसमान में चंद्रमा चमक रहा हो
रात इसी महसूस हो रही हो
जैसे की, वो खामोश सी कोई कविता है
आपका दिल क्या महसूस करता है
ये लिखिए , कोई उपमा या उपमान
या कोई बिम्ब सूझे, तो रात को वो नाम दीजिये
जैसे रात को आप एक इसी रहस्यमयी सुन्दरी कह सकते है
जिसने चांदनी के सितारों वाली ओढनी ओढ़ी हो , और अपने प्रियतम
चंद्रमा से मिलने चली हो
आप सावन के महीने में लिख रहे है , तो उसकी विशेषता लिखे
कैसे जुगनुओं को चमकते देख रहे है, जो अपनी चमक से अँधेरे को भीमात  दे रहे हो
(नही लिख सकती, बहुत शोर हो रहा है )

Wednesday, 14 August 2013

k ye bhi bat h

एक शे'र है , सुनिए

तुम रेल सी  गुजरती हो
वो , पुल सा थरथराता है
(ये बावली , कुछ तो रहम कर )

fir vnhi bat h

अपनी आखों में लगा लिया है
तुमने रात  का अंजन
चाँद सी जगमगा उठी है
काया तेरी कंचन कंचन
तल्लीन है , रात उनींदी सी
कोई नया  ख्वाब बुनने में
उंघती चांदनी मस्त है
उंघते बादलों को। ……. में
(यंहा। ……. में आप जो शब्द रखना चाहो )

Tuesday, 13 August 2013

ye kavita bhi sadharan h

तेरे आंचल में खिले
फूल ही फूल
तेरे ओठों पर सजे
हंसी मृदुल मृदुल
तेरी चितवन करें बातें
चटुल , चटुल
चित्त मेरा ,तुझे पाकर
होता है , प्रफुल्ल

एक औसत कविता 

umga means

उमगा याने , उमगने वाली जिस में उमंगे भरी हो
हुलसना, उमगना जैसे देशी शब्दों को हम प्रयुक्त नही करते है
हमारे बचपन के वक्त जो शब्द हम सुनते थे , अपने बड़ों से
वो अब नही सुन सकते , क्योंकि वो लुप्त हो चुके है
जिसका प्रयोग नही होता, वो शब्द ख़त्म हो जाते है
ओ भाषा भी नस्त हो जाती है
कितनी ही भाषा व् बोली आज हम नही जान  सकते 

ye umga

हे उमगा
लगती है ,तू
निश्ताब्ध निशा में
खुमार जगा जगा
 
              २
मधुर मधुर हंसी तुम्हारी
अरुण अरुण , तुम्हारे कपोल
नैनों में तेरे , विहंसते फूल
प्रिय लगते , तुम्हारे मीठे बोल
आगमन से तुम्हारे , नदियों में कल्लोल
(कल्लोल -कल कल )
ह्रदय में उठी है , ये कैसी हिलोर
सजनी तो सीधी है
पर नैन उसके बरजोर
जोगेश्वरी 

Saturday, 10 August 2013

baharo ful barsao

अब क्या लिखूं
बहारों फुल बरसो 

ye ek kavita shesh thi

ये मतवाली
तुम कितनी सम्रद्ध हो
तुम्हारे उभार में
कंचन-जंघा का  चरम है
तुम्हारे सौन्दर्य से
प्रकृति का ऐश्वर्य
छलक पड़ता है
तुम्हारी उद्दात भावनाएँ
जैसे उफनता हुवा
समुद्र है
तुम जैसे
शिवालिक की  चोटियों को
आंदोलित करती हुयी
विजय करती हुयी
मुस्कराती हो
वो, तुम्हारी तिरछी
चितवन की
बंकिम हँसी , व्
लजीली मुस्कान निरख कर
लगता है
गूंजने लगी हो,
बांसुरी कान्हा की

जोगेश्वरी 

amrpga

आम्र -पगा ,
क्या स्थगित कर दूँ , ये कविता
ये श्रंखला
किसी दुसरे-जनम में पूरी करने के लिए

मैंने  जो अनुराग -पगा लिखी हूँ
वो, दरअसल आम्र-पगा ही है

Tuesday, 6 August 2013

ye sumukhi

हे सुमुखी रूप तेरा
चांदनी से धुला  धुला
शरद की पूर्णिमा में
जैसे चंद्रमा उजला
उर्वशी रूप तुम्हारा
जंवा -कुसुम सा जगा जगा
जिसने भी देख लिया
रह गया ठगा ठगा
अषाढ़ की  रातों में
जुगनुओं की आंख -मिचौली
इसे में मधुर लगती
म्रदु-भाषणी तुम्हारी बोली
बादलों संग बिजली का
सावन में चल रहा विहार
सुन्दरी तेरे आंचल में सजे
प्रणय के प्रेमोपहार
अनुराग-पगा तेरी चितवन
करती भावों का संचार
लाज से ढके मूंदे
युअवन के प्रेमोपहार
जोगेश्वरी 

ye vdhu, ye bhamini

 वधु , ये भामिनी
तुम्हारी मुस्कराहट की चकाचौंध
मुझे अनुरागी बनती है
तुम्हारी रूप-ज्योत्स्ना में
तप्त ह्रदय को शीतलता मिलती है
तुम समस्त सुखों को
प्रदान करनेवाली, गौरी हो
तुम्हारे जैसा सुख देने वाला
इश जीवन में नही   है
तुम मेरी समस्त कलाओं की
उत्तराधिकारी हो
तुम मेरे पुत्र की सहज सखी हो
उसे प्रेरित करने वाली बनो
तुम्हारे सिवा मुझे कोई उसका
सच्चा हितेषी नही मिलता
तुम सच्ची भवप्रीता हो
तुम जैसी सहनशील कौन है ?
तुम्हारा स्नेह अचल है
तुम्हारे आँचल में प्रसून खिले
तुम हमारे घर आँगन में
खुशियों की वृष्टि करती हो
तुम्हारे आने से हमारे कुल की
श्री वृद्धि होती है
मै  तुम्हे अपने सरे कर्तव्य सौंप कर
विश्रांति पाती  हु
तुम जन्हा भी रहो , विजयी रहो
तुम सुरक्षित रहो, सुखी बनो
जन्हा भी रहो, लक्ष्मी तुम्हारी
अनुगामिनी बने
जोगेश्वरी

Saturday, 3 August 2013

ek kavita likhne ka vada h

ek kavita hmesha
likhne ka sankalp h
जिस दिन नहीं लिखूं
तो, कुछ हफ्ते इंतजार करना
फिर भी लिखती नही दिखूं
तो, मान लेना कि
मै  जीवित नही हूँ
(और रहत की साँस लेना)

kyon lgta h

क्यों लगता है
तुम्हारा रूप पारदर्शी
क्योंकि, तुम्हारे सौन्दर्य के
उस पर भी
होता है, एक देवीय अहसास
जो ,तुम्हारी उन्मुक्त हंसी से
उपजा होता है
देता है दिलासा मन को
और ,तुम्हारे रूप की ओर
आकर्षित  करता है

मित्रता दिवश पर भेंट कविता की
जोगेश्वरी 

Friday, 2 August 2013

bahut sidhi poem h

बेहद सीधी कविता है

रात के आँचल में झिलमिलाते
जगमगाती चांदनी के फूल
दूर दूर तक खोई होती है
रात अपने ही आगोश में
चंद्रमा जब करता है सफ़र
उमगते ह्युए निशीथ में
रिमझिम बारिश के संग
भीगा होता है , हर समां
धुंधले वीराने तब महक कर
लगने लगते है जंवा जंवा
अंधकार का मटमैलापन
वर्षा में हो जाता है ,गाढ़ा
 

अभी इतनी ही लिखी है , ये कविता
जोगेश्वरी 

ehi aash

एही आस अटक्यो रहे ,अली कली के मूल

मेरी नही है , ये कविता , या कहे दोहा 

Thursday, 1 August 2013

ye kiski yadon ne

 अधूरी कविता , कल पूरी की

ये किसकी यादों ने
ली, दिल में अंगडाई
कि , तुम्हारी आँखों से
झलक पड़ा है ,यौवन
गुनगुना उठी है दिशाए
महकने लगे है ,वन-उपवन
ये किसकी परछाई
कसमसाई नैनों की झील में
लगता है ,जैसे सरोवर में
उतरा रहे है कमल
ये किसके अधरों ने किया है
आलिंगन का अनुवाद
कि ,आसमान तक
लहरा रहा है , तुम्हारा आँचल
वो,पहाड़ों पर छा रही है
घटाएं काली -मतवाली
लगता है ,जैसे आँखों में
आंज लिया है ,तुमने काजल

जोगेश्वरी 

Tuesday, 30 July 2013

sapnon ke ganv me

यूँ ही लिख रही हूँ, ये कविता
क्यूंकि , रोज तुमसे एक कविता
लिखने का वादा है

झिलमिल सितारों की छाँव में
जहाँ  अँधेरा बुनता है
कोई, रहस्य
और गुम  हो जाती है
अपनी ही पहचान
जब बादलों से झांकता है
चंद्रमा ,
झीलों में चांदनी का
आँचल लहराता है
जब, कोई पक्षी तडपता है
गूंजने लगती है
कंही शहनाई
ख़ामोशी खुद को ही
जब, सुनने लगती है
तुम्हारी याद तब
सन्नाटे को चिर कर
कैसे गुनगुनाती है
विहंसती है
मुस्कराती है 

Saturday, 27 July 2013

tujhe bhul jana...

सच कामिनी ,
सोने का ये ढंग
कान्हा से सीखा है
चुनरी को
दन्त-पंक्तियों में दबा कर
मुठ्ठियों में
आंचल को भीच कर
जब तुम सोती हो
सरोवर में खिलती
कमलिनी की याद अति है
जो भ्रमर मन को बांध कर
प्रात तक नही नही पसीजती