ये उमगा , वो आम्रपगा
मेरी जन्म की ऋतू में
वो, भोर के तारे की तरह
उदित हो रहा है
दिशाएं निर्मल होने लगे
जब,नदियों में जल का भराव हो
इसे शरद की भोर में
ऋषियों के मुहूर्त में
उसका उदय अवश्यम्भावी है
वो मेरे सात्विक गाम्भीर्य
और तेरी चपल चंचलता से भरा
वीरोचित व् साहसी होगा
तेरे सुंदर मुख की अनुकृति
विहंसते अधरों से
मोहित करता आ रहा है
तेरे आँचल में प्रसून सा खिलता
पूनम के चंद्रमा सा निखरता
जब, वो अर्धुन्मिलित दृष्टी से
तुझे, टुकुर टुकुर निहारेगा
उसकी(बालक ) बालसुलभ निगाहों में
तुम्हे, मेरी बेधती नजरों का
अहसास होगा
वो, तुम्हारे ,जलाये दीपों का
जगमगाता उजास होगा
सोनू की तरह , चौड़े स्कंधों से युक्त
सिंह सा प्रतीत होता
वो, राजसी चल से चलता
स्वत बनकर सबका चहेता
वो, शाश्त्रों का उद्वेत्ता
मुझ सा जिग्याशु चिन्त्नन्वेता
देवताओ से आशीष लेता
वो, मेरी तरह, तेज से अभिसिक्त
तेरी कोख में प्रभामंडल सा
तेरे जीवन में छा रहा है
वो, जज्ल्व्मान नक्षत्र सा
तुझसा मन मोहता
तेरे जीवन साथी की तरह
तुझपर अविच्छन्न
स्नेह लुटाने
तुम्हे अपने में समाहित करके
वो, वीरोचित अभिमानी
संस्कारी द्विज सा
शास्तों का प्रणेता
मुझसा, स्वत प्रतिभा से
अनुप्राणित
तेरे आँचल में खेलने
मुस्कराता हुवा
निश्छल प्रभाष सा
सागर सरीखे , विस्तृत ह्रदय वाला
नभ के विस्तार युक्त
प्रखेरुओं सा उन्मुक्त विचरता
पराक्रमी योद्धा सा
विहँसता मचलता
तेरी गोद में खेलने आ रहा है
उठ मानिनी
तेरे बरसों के स्वप्नों का
साकार समुच्चय
तेरा दुलार पाने
सबका मन बहलाने
तेरा मन बढ़ाने
तुझे पल पल रिझाने
दिसम्बर के आसपास आ रहा है
वो, भोर का तारा
अनुराग हमारा
अध्खेली करता
राग जगाता आ रहा है