Friday 27 December 2013

हमेशा उत्सव के बाद होता है 
एक दिलफरेब मौन 
इसे हम सन्नाटा भी मानते है 
तब सोचते है कि 
कोई दिल के बहुत करीब रहे हमेशा 
                                                      
उसकी चितवन में थे कई मर्म कई भेद 
जो, उसने नही कहे किसी से और ओढ़ ली 
हमेशा चुनरी संग 
सल्लाज सी हंसी 
जो, उसने न किसी से कहा 
न चाहा कीकोई उसकी सुने 
इतनी मर्म-भेदी होती है 
उसकी दृष्टि 
जब वो, चुप सी कुछ सोचते हुए 
देखती है, कंही नही 

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