हमेशा उत्सव के बाद होता है
एक दिलफरेब मौन
इसे हम सन्नाटा भी मानते है
तब सोचते है कि
कोई दिल के बहुत करीब रहे हमेशा
उसकी चितवन में थे कई मर्म कई भेद
जो, उसने नही कहे किसी से और ओढ़ ली
हमेशा चुनरी संग
सल्लाज सी हंसी
जो, उसने न किसी से कहा
न चाहा कीकोई उसकी सुने
इतनी मर्म-भेदी होती है
उसकी दृष्टि
जब वो, चुप सी कुछ सोचते हुए
देखती है, कंही नही
एक दिलफरेब मौन
इसे हम सन्नाटा भी मानते है
तब सोचते है कि
कोई दिल के बहुत करीब रहे हमेशा
उसकी चितवन में थे कई मर्म कई भेद
जो, उसने नही कहे किसी से और ओढ़ ली
हमेशा चुनरी संग
सल्लाज सी हंसी
जो, उसने न किसी से कहा
न चाहा कीकोई उसकी सुने
इतनी मर्म-भेदी होती है
उसकी दृष्टि
जब वो, चुप सी कुछ सोचते हुए
देखती है, कंही नही
No comments:
Post a Comment