Wednesday 18 December 2013

ए रस-नयना 
तुम्हारी रसीली चितवन से 
जो देखने वालों पर 
रस बरसता है 
जितना बरसता है 
मन उतना ही सरसता है 

ये जो निगाहों से
ये जो तुम निगाहों से 
पैने पैने वार  करती हो 
जिंदगी पर 
मौत उधर धरती हो 
तुम्हारे रूप का रसपान 
करनेवालों का 
सुखचैन 
तुम कैसे 
मुस्कराकर हरति हो 

जो तुम्हे देखे 
दिल उसका मचले नही 
ऐसा हो नही सकता 
ए रस भरी बैटन वाली 
ए रस भरी बातों वाली 
बिखरने लगी है 
जबसे , तेरे अधरों और 
कपोलों पर लाली 
देखनेवालों की 
नज़रें भी हो गयी है 
तबसे मतवाली 

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