बेहद सीधी कविता है
रात के आँचल में झिलमिलाते
जगमगाती चांदनी के फूल
दूर दूर तक खोई होती है
रात अपने ही आगोश में
चंद्रमा जब करता है सफ़र
उमगते ह्युए निशीथ में
रिमझिम बारिश के संग
भीगा होता है , हर समां
धुंधले वीराने तब महक कर
लगने लगते है जंवा जंवा
अंधकार का मटमैलापन
वर्षा में हो जाता है ,गाढ़ा
अभी इतनी ही लिखी है , ये कविता
जोगेश्वरी
रात के आँचल में झिलमिलाते
जगमगाती चांदनी के फूल
दूर दूर तक खोई होती है
रात अपने ही आगोश में
चंद्रमा जब करता है सफ़र
उमगते ह्युए निशीथ में
रिमझिम बारिश के संग
भीगा होता है , हर समां
धुंधले वीराने तब महक कर
लगने लगते है जंवा जंवा
अंधकार का मटमैलापन
वर्षा में हो जाता है ,गाढ़ा
अभी इतनी ही लिखी है , ये कविता
जोगेश्वरी
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