Saturday 24 August 2013

dhalti sanjh me

ढलती  साँझ में
थपकी देती हवाएं
डूबते सूरज संग
सिहरती घटाएं
वो,  कौन सा दिन था
जो, तेरे ख्याल बिता
बेगानी सी लगती है
अब निररुद्देश निशायें 

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