Friday 30 August 2013

ye pranpiriya

ये प्राणप्रिया
ये, जो, मैंने
तुम्हारे आँचल पर
अर्ध-रात्रि के गीत लिखे है
वो, एकांत निशाओं का
महाकाव्य
तेरे अद्वितिव सौन्दर्य से
रस-सिक्त हो उठा है
कामिनी
ये  तेरा कैसा म्रदु-हास् है
जो, युगों युगों की
प्यास जगता भी है
 बुझाता भी है

ओ चित्त -हरिणी
अपनी नाजुक उँगलियों से
उकेर कर रंगों का अपूर्व संसार
जगा दिए तूने मेरे
युगों युगों से सुप्त
प्रेम-राग

तुम्हारी हंसी
और, नदी की धार  के बीच
कुछ भी तो, नही
 सिवाय,मेरे प्यार के

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