Tuesday 6 August 2013

ye sumukhi

हे सुमुखी रूप तेरा
चांदनी से धुला  धुला
शरद की पूर्णिमा में
जैसे चंद्रमा उजला
उर्वशी रूप तुम्हारा
जंवा -कुसुम सा जगा जगा
जिसने भी देख लिया
रह गया ठगा ठगा
अषाढ़ की  रातों में
जुगनुओं की आंख -मिचौली
इसे में मधुर लगती
म्रदु-भाषणी तुम्हारी बोली
बादलों संग बिजली का
सावन में चल रहा विहार
सुन्दरी तेरे आंचल में सजे
प्रणय के प्रेमोपहार
अनुराग-पगा तेरी चितवन
करती भावों का संचार
लाज से ढके मूंदे
युअवन के प्रेमोपहार
जोगेश्वरी 

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