कान्तार
तेरे रमणीय अहसासों से
सज गया है
मेरा ह्रदय प्रान्तार
देख ,कैसा मेघ
नित बरसता है
आकाश ,धुशर होकर भी
नित , नूतन लगता है
जाने ह्रदय के किस कोने में
करती हो ,तुम विश्राम
कि ठिठक के
बज उठे है
मन वीणा के प्राण
जोगेश्वरी
तेरे रमणीय अहसासों से
सज गया है
मेरा ह्रदय प्रान्तार
देख ,कैसा मेघ
नित बरसता है
आकाश ,धुशर होकर भी
नित , नूतन लगता है
जाने ह्रदय के किस कोने में
करती हो ,तुम विश्राम
कि ठिठक के
बज उठे है
मन वीणा के प्राण
जोगेश्वरी
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