Wednesday 21 August 2013

kantar....

कान्तार
तेरे रमणीय अहसासों से
सज गया है
मेरा ह्रदय प्रान्तार
देख ,कैसा मेघ
नित बरसता है
आकाश ,धुशर होकर भी
नित , नूतन लगता है
जाने ह्रदय के किस कोने में
 करती हो ,तुम विश्राम
कि ठिठक के
बज  उठे है
मन वीणा  के प्राण

जोगेश्वरी 

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