Wednesday 14 August 2013

fir vnhi bat h

अपनी आखों में लगा लिया है
तुमने रात  का अंजन
चाँद सी जगमगा उठी है
काया तेरी कंचन कंचन
तल्लीन है , रात उनींदी सी
कोई नया  ख्वाब बुनने में
उंघती चांदनी मस्त है
उंघते बादलों को। ……. में
(यंहा। ……. में आप जो शब्द रखना चाहो )

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