Tuesday 6 August 2013

ye vdhu, ye bhamini

 वधु , ये भामिनी
तुम्हारी मुस्कराहट की चकाचौंध
मुझे अनुरागी बनती है
तुम्हारी रूप-ज्योत्स्ना में
तप्त ह्रदय को शीतलता मिलती है
तुम समस्त सुखों को
प्रदान करनेवाली, गौरी हो
तुम्हारे जैसा सुख देने वाला
इश जीवन में नही   है
तुम मेरी समस्त कलाओं की
उत्तराधिकारी हो
तुम मेरे पुत्र की सहज सखी हो
उसे प्रेरित करने वाली बनो
तुम्हारे सिवा मुझे कोई उसका
सच्चा हितेषी नही मिलता
तुम सच्ची भवप्रीता हो
तुम जैसी सहनशील कौन है ?
तुम्हारा स्नेह अचल है
तुम्हारे आँचल में प्रसून खिले
तुम हमारे घर आँगन में
खुशियों की वृष्टि करती हो
तुम्हारे आने से हमारे कुल की
श्री वृद्धि होती है
मै  तुम्हे अपने सरे कर्तव्य सौंप कर
विश्रांति पाती  हु
तुम जन्हा भी रहो , विजयी रहो
तुम सुरक्षित रहो, सुखी बनो
जन्हा भी रहो, लक्ष्मी तुम्हारी
अनुगामिनी बने
जोगेश्वरी

No comments:

Post a Comment