Friday 23 August 2013

ratri me

रात्रि में , सोये हुए
तेरे निन्द्रित मुख की
निरखकर छटा
लगता है , जैसे
सावन की निविड़ रातों में
 झूम रही हो
मतवाली , बावरी घटा
ओ, बावली
अपने चंद्रमुख से
ये, केशों की अलकें तो हटा
देखूं तेरा
पूनम के चाँद सा
उजला चमकता मुख
ह्रदय ने पाया है
जैसे तुझे निरखने का
जन्मों जन्मों का सुख 

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