ये मतवाली
तुम कितनी सम्रद्ध हो
तुम्हारे उभार में
कंचन-जंघा का चरम है
तुम्हारे सौन्दर्य से
प्रकृति का ऐश्वर्य
छलक पड़ता है
तुम्हारी उद्दात भावनाएँ
जैसे उफनता हुवा
समुद्र है
तुम जैसे
शिवालिक की चोटियों को
आंदोलित करती हुयी
विजय करती हुयी
मुस्कराती हो
वो, तुम्हारी तिरछी
चितवन की
बंकिम हँसी , व्
लजीली मुस्कान निरख कर
लगता है
गूंजने लगी हो,
बांसुरी कान्हा की
जोगेश्वरी
तुम कितनी सम्रद्ध हो
तुम्हारे उभार में
कंचन-जंघा का चरम है
तुम्हारे सौन्दर्य से
प्रकृति का ऐश्वर्य
छलक पड़ता है
तुम्हारी उद्दात भावनाएँ
जैसे उफनता हुवा
समुद्र है
तुम जैसे
शिवालिक की चोटियों को
आंदोलित करती हुयी
विजय करती हुयी
मुस्कराती हो
वो, तुम्हारी तिरछी
चितवन की
बंकिम हँसी , व्
लजीली मुस्कान निरख कर
लगता है
गूंजने लगी हो,
बांसुरी कान्हा की
जोगेश्वरी
ynha maine ubhar ki jagah sringar ko prayukt krna chaha, pr kavita me vo nhi jma
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